divane sukh-dukh ko ek saman kyo manthe hai

मित्र!
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-

दीवाने अपना जीवन संतों के समान जीते हैं। वे इस सत्य को जानते हैं कि सुख और दुख कुछ नहीं होता। ये भाव हैं, जो मनुष्य को कमज़ोर करते हैं। मनुष्य इनके चक्करों में पड़कर ही सुखी और दुखी होते हैं। अतः उन्होंने स्वयं को इन भावों से अलग कर लिया है। वे अन्य मनुष्य के समान सुख में सुखी नहीं होते हैं और न दुख में दुखी होते हैं। उनके लिए ये दोनों स्थिति अलग नहीं है। वे इन्हें एक सा मानते हैं। यही कारण है कि इनके लिए ये समान हैं। दोनों स्थिति में वे स्वयं को संतुलित बनाकर चलते हैं।

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