ek phool  ki  chaah ek drama ke roop meh........please mam

नमस्कार मित्र,

बाहर रोने की आवाज़ें आ-आकर ह्दय को काँपा रही है। घर में सन्नाटा है। कोई कमरे में चहल-कदमी कर रहा है। चिंता की लकीरें चहरे पर साफ से देखी जा सकती है। एक दुबली-पतली लड़की गुलाबी फ्रॉक पहने खेल रही है। उसे खेलते देख व्यक्ति के चेहरे में बहार आ जाती है कि तभी बाहर से आवाज आती है। 

लड़का :सुखिया! जल्दी आ, खेल शुरू हो रहा है। 

सुखिया : (तेज़ी से) ऐ ठहरो! मैं भी आई। 

पिता : (परेशान होकर) सुखिया कहाँ जा रही हो? तुम्हें कितनी बार बोला है, बाहर महामारी का प्रकोप फ़ैला है, बाहर खेलने मत जाया करो। 

सुखिया : (रोते हुए) पिताजी मुझे कुछ नहीं होगा। जाने दीजिए न। ।

पिता : तुम मानोगी नहीं। अच्छा जाओ पर अपना ध्यान रखना.............. 

आपको 'एक फूल की चाह' का संवाद लेखन भेज रही हूँ परन्तु यह पूरा नहीं है। कविता को पढ़कर इसे आप स्वयं पूरा करो, इससे आपका अच्छा अभ्यास होगा और आपको संवाद लेखन लिखना भी आएगा साथ ही आपका ड्रामा भी पूरा हो जाएगा।

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thank you...............

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