Eska Arth
​जल-जलकर बुझ गए, किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
​2. पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रहीं लू-लपट दिशाएँ
​जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।


 

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