essay in Hindi
In 250 words

मित्र

टी.वी. में कई बार अंतरिक्ष से जुड़े कार्यक्रम देखा करता था। उन्हें देखकर हमेशा यही ख्याल आता था कि काश में भी अंतरिक्ष की यात्रा कर पाता। एक दिन में डिस्कवरी पर अंतरिक्ष से संबंधित कार्यक्रम देख रहा था। रात के नौ बजे थे। उस कार्यक्रम में तारों, ग्रहों, आकाशगंगाओं आदि के विषय में बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी जा रही थी। उसे देखते-देखते मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
मैंने पाया कि मैं एक बड़े से अंतरिक्षयान में बैठा हुआ हूँ। वह यान सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त था। वह इतना सुविधाजनक और बड़ा था कि मैं देखता ही रह गया। मैं सोच ही रहा था कि इसको कैसे चलाऊँ, वह स्वयं ही उड़ चला। उसके कंप्यूटर से मुझे ज्ञात हुआ कि यह मन में विचार करने से ही उड़ाया जा सकता है। यह स्वयं उड़ भी सकता है। इस यान को चलाने के लिए चालाक की आवश्यकता नहीं है। मैं धीरे-धीरे पृथ्वी की कक्षा से बाहर आ गया। पृथ्वी अंतरिक्ष से बहुत सुंदर गहरे नीले रंग की गेंद जैसी लग रही थी। मैं और ऊपर जाने लगा। अंतरिक्ष में और आगे जाकर मैंने देखा कि वह अकेली नहीं थी। उसके आस-पास विभिन्न तरह के तारे भी विद्यमान थे। वह तारे पृथ्वी से भी अधिक बड़े और चमकीले थे। मैंने मन-मन ही मन सोचा कि काश में चांद को देख पाता। मेरा अंतरिक्षयान मेरे मन की बात जानकर मुझे चांद पर ले गया। उसे अपनी प्रत्यक्ष आँखों से देखने का नज़ारा अद्भूत था। वह एक बहुत बड़ी सफ़ेद गेंद के समान लगा रहा था। उसे देखकर में भाव-विभोर हो गया। मैंने उसे नज़दीक से देखने की इच्छा जाहीर की तो वह मुझे चांद के और समीप ले गया। वहाँ मैंने देखा की चांद की भूमि की मिट्टी राख के समान थी। वहाँ चारों और बड़े गड्डे थे, जो विभिन्न ज्वालामुखियों के समान लग रहे थे। ऐसा लगा मानो मेरा सपना साकार हो गया हो।
अचानक मुझे भयानक आवाज़ सुनाई दी। माताजी ने दूध खुला रख दिया था बिल्ली ने दूध का पतीला गिरा दिया था। उसकी आवाज़ ने मेरा सुंदर सपना तोड़ दिया और मैं जाग गया।

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