Essay on rashtramandal khel
राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन पहली बार वर्ष 1930 में हेमिल्टन शहर, ओंटेरियो (कनाडा) में आयोजित किया गया था। तब इस खेल आयोजन का नाम ब्रिटिश एम्पायर गेम्स था। इसके खेल आयोजन का मूल विचार एक भारतीय का था जिनका नाम एशली कूपर था। उन्होंने इस खेल आयोजन को आपसी शांति और सौहार्द्र के लिए सही मानते हुए इसका प्रस्ताव तात्कालिक राजनेताओं को दिया था। वर्ष 1928 में कनाडा के प्रमुख एथलीट बॉबी रॉबिंसन को प्रथम राष्ट्र मंडल खेलों के आयोजन का भार सौंपा गया। 1930 में पहली बार इस खेल आयोजन का शुभारंभ हुआ जिसमें मात्र 11 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। इसके नाम में भी कई बार बदलाव हुए जैसे 1954 में इसे ब्रिटिश एम्पायर और कॉमन वेल्थ गेम्स के नाम से पुकारा गया तो 1970 में ब्रिटिश कॉमन वेल्थ गेम्स से. आखिरकार वर्ष 1978 में इसे सर्वसम्मति से कॉमनवेल्थ गेम्स नाम दिया गया। वर्ष 1998 में कुआलालमपुर में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में एक बड़ा बदलाव देखा गया जब क्रिकेट, हॉकी और नेटबॉल जैसे खेलों ने पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. हालांकि क्रिकेट को अभी भी मान्यता नही मिल पाई है।
जो बात इन राष्ट्रमंडल खेलों को बाकी खेल आयोजनों से अलग करती है वह है इसका उद्देश्य और इसकी नीति.
राष्ट्र्मंडल खेल तीन नीतियों को मानता है
मानवता, समानता और नियति. इसका मानना है कि इससे विश्वभर में शांति और सहयोग की भावना बढ़ेगी. यह नीतियां हजारों लोगों को प्रेरणा देती हैं और उन्हें आपस में जोड़ कर राष्ट्रमंडल देशों के अंदर खेलों को अपनाने का व्यापक नजरिया प्रदान करती हैं।
इसके प्रतियोगियों की बात करें तो इसमें 6 देश (आस्ट्रेलिया, कनाडा, इंग्लैण्ड, न्यूजीलैण्ड, स्कॉटलैण्ड और वेल्स) ऐसे हैं जो प्रत्येक वर्ष इसमें हिस्सा लेते हैं। पिछले यानी मेलबोर्न में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स में सभी 53 राष्ट्रमंडल देशों सहित कुल 71 देशों की टीमों ने भाग लिया था।
और हां, वर्ष 1930 में शुरु होने के बाद द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से 1930-1942 के मध्य इन खेलों का आयोजन न हो सका. मगर 1942 में एक बार फिर से इन खेलों का आयोजन होने लगा.
इसके प्रतीक और कुछ अन्य तथ्य भी बड़े रोचक हैं जैसे महारानी की बेटन रिले, प्रतीक और लोगो आदि.
आइए इन पर भी एक नजर डालते हैं