Essay on Varshik Puraskar vitran( Annual prize Distribution)

नमस्कार मित्र!
हमारे विद्यालय में कुछ दिन पहले वार्षिक पुरस्कार-वितरण कार्यक्रम था। आज भी उस कार्यक्रम का स्मरण आते ही हृदय प्रसन्नता से भर जाता है। प्रधानाचार्य जी द्वारा प्रार्थना सभा में घोषण की गई कि 23 नवम्बर, 2011 को हमारे विद्यालय में रंगारंग वार्षिक पुरस्कार-वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।
समारोह से पन्द्रह दिन पहले से ही हमारे विद्यालय में इस आयोजन की तैयारियाँ आरम्भ हो गईं। संस्कृत के अध्यापक नारायण शास्त्री को सर्वसम्मति से प्रभारी (इंचार्ज) नियुक्त किया गया। समारोह का सारा कार्य भार उन पर आ पड़ा। नारायण जी ने उन बच्चों को एकत्र कर उन्हें उनके कौशल के आधार पर अलग-अलग कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने के लिए बाँट दिया।
उन्होंने कुछ विद्यार्थियों को नृत्य प्रस्तुत करने के लिए और कुछ विद्यार्थियों को नृत्य-नाटिका के लिए तैयार किया। शास्त्री जी ने कुछ बच्चों को समारोह में उनके साथ समारोह का कार्य भार संभालने के लिए नियुक्त किया व कुछ छात्राओं को अतिथियों का स्वागत करने के लिए नियुक्त किया। समारोह स्थल में एक ऊँचा व बड़ा मंडप बनाया गया। अतिथियों के लिए कुर्सियाँ व टेबलों को लगाया गया।
 
नियत समय पर कार्यक्रम आरम्भ हो गया। जिला अध्यक्ष के आते ही उनके स्वागत के लिए अभिनन्दन गीत गाया गया जिसे बहुत ही मीठे सुरों से सँवारा गया था। उसके बाद रंगारंग कार्यक्रम का सिलसिला प्रारम्भ हो गया। सर्वप्रथम अभिज्ञानशाकुन्तलम् पर आधारित नृत्य नाटिका प्रस्तुत की गई थी। सभी दर्शकों ने इस नृत्य-नाटिका की सराहना की। लोकनृत्यों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। नृत्य के समाप्त होते ही पुरस्कार-वितरण आरंभ हुआ। मुख्य अतिथि ने सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थियों को उनकी वर्षभर की उपलब्धी के लिए पुरस्कार दिए। मुझे भी सर्वश्रेष्ट विद्यार्थी का पुरस्कार दिया गया। हमारे विद्यालय में कुल 50 छात्रों को उनकी योग्यता के आधार पर पुरस्कार दिए गए। पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सफलता के झण्डे फहराने वाले विद्यार्थियों के लिए थे; जैसे- खेलकूद में, लेखन कौशल में, परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने वालों के लिए, नृत्य और संगीत के क्षेत्र में। सब बच्चों के माता-पिता कार्यक्रम में अपने बच्चों का उत्साह बढ़ाने आए थे।
विद्यालय के सभी अध्यापकों, विद्यार्थियों और सभी बच्चों के माता-पिता ने इस समारोह का आनन्द लिया। इस समारोह में शास्त्री जी की कार्यकुशलता को खुब सहारा गया। ये समारोह आज भी मुझे याद आता है। उस आनन्द को भुलना मेरे लिए सम्भव नहीं है।
 
ढेरों शुभकामनाएँ!
 
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