essay/speech on bhartiya samaj aur andhvishvaas

अंधविश्वास सदियों से चला आ रहा है। यह समाज में फैला ऐसा रोग है, जिसने समाज की नींव खोखली कर दी है। अंधविश्वास किसी जाति, समुदाय या वर्ग से संबंधित नहीं है बल्कि यह समान रूप से हर किसी के अंदर विद्यमान होता है। अंधविश्वास में पड़ा हुआ मनुष्य कई बार इस प्रकार के कार्य करता है, जो हास्यास्पद स्थिति पैदा कर देते हैं। अंधविश्वास मनुष्य को आंतरिक स्तर पर कमज़ोर बनाता है। वह ऐसी बातों पर विश्वास करने लगता है, जिनका कौई औचित्य नहीं होता। मनुष्य इस विकार से ग्रस्त है तो समाज का बच पाना संभव नहीं है। भारतीय समाज में तो इसकी जड़ें बहुत गहरी है। हर अच्छे-बुरे काम में अंधविश्वास की छाया दिखाई दे जाएगी। घर से निकलते हुए छींक आ जाना, बिल्ली रास्ता काट जाना, पूजा के दीए का बीच में बुझ जाना, आधी रात में कुत्ते भौंकना या उल्लू का रोना इत्यादि बातें है, जिससे लोग सदियों से डरते आ रहे हैं। भारतीय समाज को इन्हीं अंधविश्वासों ने कोसों पीछे छोड़ रखा है। ऐसा नहीं है कि अंधविश्वास बस भारतीय समाज में विद्यमान है वरन् यह विदेशों में भी समान रूप से विद्यमान है। परन्तु भारतीय इनसे उभर नहीं पा रहे हैं। आज भी कितने ही शिक्षित लोग हैं, जो अंधविश्वास में पड़े हुए हैं। यही कारण है कि हमारी विकास गति इतनी धीमी है।  चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के पीछे वैज्ञानिक कारणों को अनदेखा करके हम अंदर से भयभीत रहते हैं। भारतीय समाज को इसके प्रति संकुचित दृष्टिकोण रखने की अपेक्षा इसमें छिपे रहस्य को जानना चाहिए वरना हम पीछे ही रह जाएँगे।

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