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प्रिय विद्यार्थी,


इस कविता में कवि ने अपने प्रेम से भरे हृदय को दर्शाया है क्योंकि कवि का स्वभाव बहुत ही प्रेमपूर्ण है। सभी संसार के व्यक्तियों से वह प्रेम करता है और खुशियाँ बाँटता है यही सब इस कविता में दर्शाया है। वो अपने जीवन को अपने ढंग से जीते हैं, मस्त-मौला है चारों ओर प्रेम बाँटने का सन्देश देते हैं। इस कविता के द्वारा एक सीख देते है की हमें सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। वे खुशियों का संचार करते हैं, जहाँ भी जाते हैं खुशियाँ बिखेरते हैं और जीवन में असफल हो जाने पर हार जाने पर भी किसी को दोष नहीं देते । इस कविता में सन्देश देते हैं कि हमें अपनी सफलता और असफलता का श्रेय स्वयं को ही देना चाहिए क्योंकि अगर हम असफल होते है तो उसमें भी कहीं न कहीं दोष हमारा ही होता है किसी और का नहीं और सफल होते है तो भी श्रेय हमारा ही होता है क्योंकि महेनत हमने की होती है। और स्वंय असफल होने पर किसी अन्य को दोषी नहीं मानते है। वे जब जीवन में कभी हार जाते हैं, असफल हो जाते है इस सब का दोष किसी और को नहीं देते । यह इंसानियत की बहुत ही बड़ी बात है जोकि कवि में देखी जाती है।


अपनी मस्ती में रहने वाले लोगों की क्या हस्ती, क्या अस्तित्व है। कभी यहाँ है तो कभी वहाँ । एक जगह तो रूकने वाले नहीं है, आज यहाँ, कल वहाँ चले । यानी की जो मस्त-मौला किस्म के व्यक्ति हैं वो कभी भी एक जगह नहीं ठहरते, आज यहाँ है तो कल कहीं और। यह जो मौज मस्ती का आलम है यह साथ चला- जहाँ कवि गया वहाँ पर उन्होंने अपनी मस्ती से, अपनी प्रसन्नता से, सब में खुशियाँ बाँटी। कवि कहते हैं कि हम अपनी मस्त-मौला आदत के अनुसार जहाँ भी गए, प्रसन्नता से धूल उड़ाते चले, मौज मजा करते चले। हम दीवानों की हस्ती कुछ ऐसी ही होती है हम जहाँ भी जाते है अपने ढंग से जीते है अपने ढंग से ही चलते-चलते है । हम पर किसी का कोई असर नहीं होता। कवि कहते है वे अभी-अभी आएँ है और खुशियाँ बाँटी हैं, खुशियाँ लुटाई है और अभी कुछ हुआ कि आँसू भी बनकर बहे निकले।अर्थात् अभी-अभी खुश थे और अभी-अभी दुखी हो गए है तो आँसू भी बह निकले है । कवि मस्त-मौला किस्म के है अपने मन मरजी के मालिक हैं कभी कहीं जाते है तो कभी कहीं के लिए चल पड़ते है तो जहाँ पर पहुँचते है खुशियाँ लुटाते है और वहाँ से आगे निकल चलते है तो लोग कहते है कि अरे, तुम कब आए और कब चले गए पता ही नहीं चला।कवि कहते हैं कि यह मत पूछो कि मैं कहाँ जा रहा हूँ मेरी मंजिल क्या है क्योंकि इसके बारे में तो मुझे भी नहीं पता स्वयं को भी नहीं पता। जैसा कि मैं मस्त-मौला हूँ, एक जगह ठहरता नहीं हूँ, चलता ही रहता हूँ इसलिए बस आगे चलते ही रहना है। इस दुनिया से कुछ ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया है , कुछ सीख ली है , उसको लेकर वह आगे बढ़ चले है। जो भी उनके पास था वे भी इस दुनिया के साथ बाँटते हुए आगे चल पड़े है। कवि जहाँ कहीं भी पहुँचे वहाँ के लोगों से खुशी-खुशी से मिले और उनसे बात चीत की, अपना सुख-दुख बाँटा और अपने मन की बात कही। जब सुख के भाव जगे तो उनके साथ मिलकर हँसे भी और जब उनको दुख का अनुभाव हुआ तो उनके साथ अपना दुख भी बाँटा । उनका भी सुख-दुख बाँटा। जो दुख-सुख के समय भावनाएँ जगी, उनको एक दूसरे के साथ बाँटा जिससे व्यक्ति का मन हल्का हो जाता है। जो सुख-दुख के भाव है एक सामान हम गमों से पिए चले और आगे बढे़ चले।स्वयं: खुद

कवि इनमें कह रहे है कि यह जो दुनिया है, दुनिया के लोग भिखारियों की तरह कुछ न कुछ माँग करते रहते है । भिखारी की आदत माँगना होती है । इस दुनिया के लोगों को उन्होंने भिखमंगे कहा है । भिखमंगों की इस दुनिया में अपनी मन मरजी से अपना प्यार लुटाकर चले है। वे अपने हृदय में यही एक निशानी लेकर आगे चले है । उन्होंने जीवन में असफलता भी पाई है, हार भी मानी है, लेकिन उस का बोझ स्वयं ही उठाया है। उसका बोझ किसी पर नहीं डाला है अर्थात उसके लिए जिम्मेदार किसी अन्य व्यक्ति को नहीं मानते हैं । जो अपनी मंजिल पर रूके है वह आबाद रहे, बसे रहे यही आर्शीवाद देते है। कवि कहते है कि हम स्वयं ही अपने इन बँधनों में बँधे थे, अपनी स्वतत्रंता से, अपनी मरजी से, और हम स्वयं ही यह बँधन तोड़ आगे चल निकले है। कवि का यह मानना है कि वे संकल किस्म के मस्त-मौला आदमी दीवाने कभी किसी बँधन में नहीं बँधे है । अगर बँधे है तो वह अपनी मरजी से और अब वो आगे बढ़ निकले है अर्थात् बँधनों को तोड़ चले है तो भी वे अपनी मन मरजी से ही उन बँधनों को तोड़कर आगे बढ़े है । वह स्वयं ही इस बात का अफसोस जताते है अपने जीवन में इस बात की हार मानते है कि वे कभी भी एक संसारिक व्यक्ति नहीं बन पाए, एक संसारिक व्यक्ति का सुख नहीं भोग पाए ।

सादर।
 

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