Garmiyo me jab lambi chuttiyaan hoti hai to tumhara din kaise beet ta hai

मित्र!
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-
इस बार मैंने गर्मियों की छुट्टियों में माँ की मदद से बड़े मज़ेदार काम किए। सबसे पहले मैंने माता, पिताजी, अपने बड़े भाई-बहनों की किताबों को एकत्र करके छोटा-सा पुस्तकालय बनाया। इस पुस्तकालय में सभी को दस रुपए प्रतिदिन से पुस्तकें पढ़ने के लिए उपलब्ध करवाई गईं। सबने इसका स्वागत किया। इससे जो भी पैसे हुए, उससे मैंने नई किताबें खरीदीं। इससे मेरा पुस्तकालय स्थापित हो गया। पिताजी ने गैराज में अलमारियों का इंतज़ाम करवा दिया। इस तरह बन गया मेरा पुस्तकालय। इसमें गरीब बच्चों को मुफ्त में किताबें पढ़ने के लिए दी गईं।​​​​​​

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