geet ageet ka kendriya bhav

'गीत-अगीत' कविता में कवि रामधारी सिंह दिनकर जी इसी विचार में उलझे हुए हैं कि इस संसार में किसे गीत-अगीत कहा जाता है? प्रकृति के द्वारा किए जा रहे क्रियाकलाप या फिर मनुष्य द्वारा गाया जाने वाला गीत। वह कुछ उदाहरणों के द्वारा अपनी बात को स्पष्ट करते हैं। कवि नदी के बहने को उसके विरह के गीत मानता है। उसे लगता है कि नदी अपनी धारा के द्वारा सबको अपना दुख व्यक्त कर रही है। उनके अनुसार गुलाब का फूल भी यही सोचता है कि उसके पास स्वर होते, तो वह सबको अपनी व्यथा सुनता। एक तोता ऊँचे स्वर में गा रहा है। उसका गीत सुनकर तोती बहुत प्रसन्न है। कवि को इसमें भी सुन्दर गीत की अनुभूति होती है। कहीं एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को बुलाने के लिए गीत गा रहा है। प्रेमिका उसे सुनकर आंनदित होती है। कवि को प्रकृति द्वारा किए जा रहे क्रियाकलाप में गीत के सृजन का आभास होता है। उसके अनुसार प्रकृति द्वारा अपनी तरह से गाए जाने वाला गीत सिर्फ इसलिए अगीत कहा जाए क्योंकि वह किसी के द्वारा सुना नहीं जा सकता है या मनुष्य द्वारा गाए जाने वाला गीत। इस दुविधा में फंसा कवि पाठकों से अपनी दुविधा का उत्तर मांगता है।

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