give me an essay on aaj ki shiksha pranali

 

Hi!
 ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ है- अध्ययन तथा ज्ञान ग्रहण। वर्तमान युग में शिक्षण के लिए ज्ञान, विद्या, एजूकेशन आदि अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग होता है। शिक्षा चेतन या अचेतन रूप से मनुष्य की रूचियों, समताओं, योग्यताओं और सामाजिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता के अनुसार स्वतंत्रता देकर उसका सर्वागींण विकास करती है ।यह उसके आचरण को इस प्रकार परिवर्तित करती है, जिससे शिक्षार्थी और समाज दोनों की प्रगति होती है। ज्ञान से मस्तिष्क में नए विचारों का जन्म होता है। उसके जन्मजात गुणों का विकास होता है। भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली बिट्रिश शिक्षा प्रणाली पर आधारित है। आज की शिक्षा प्रणाली ज्ञान- मंदिर के स्थान पर अज्ञानता से उत्पन्न कलुष का केन्द्र बनकर रह गई है। यह मनुष्य को बिना सींग और पूँछ का पशु बनाने का काम कर रही है। आज की शिक्षा राजनैतिक पहुँच का मानदंड हो गई है। ऐसे में शिक्षा का स्तर क्या हो सकता है? भ्रष्टाचार का बोलबाला इतना अधिक है कि शिक्षा एक व्यवसाय बन कर रह गई है। शिक्षा पर खर्च होने वाला व्यय कुछ अधिकारियों में और कुछ नौकरशाहों में बँट जाता है। बची राशि आसमान छूने जैसी बात बनकर रह जाती है। शिक्षा सभाओं में धर्म निरपेक्षता की बात होती है। शिक्षण संस्थाओं में अध्यक्ष प्राय: राजनीतिज्ञ होते है, जिनका शिक्षा से कुछ सम्बन्ध नहीं होता। इसका परिणाम नियुक्तियों व पाठयक्रम राजनीतिक दृष्टिकोण से होते हैं, इसलिए अनुशासनहीनता भी शुरू हो जाती है। शिक्षक जो शिक्षा की रीढ़ है वह ही खुद विद्यार्थी को अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए शिक्षा विहीन छोड़ देता है। अनेक शिक्षक केवल पैसा कमाने जाते हैं, अध्यापन से उनका कोई नाता नहीं होता। नियुक्तियों के समय पैसे-को महत्त्व दिया जाता है, इससे एेसे शिक्षक नियुक्त होते हैं जिन्हें न तो विषय का ज्ञान होता है न ही शिक्षा देना आता है। पब्लिक स्कूलों में जहाँ शिक्षा का स्तर ऊँचा माना जाता है। वहाँ धन लोलुपता के कारण फीस की अधिकता के साथ पुस्तकों का बोझ, गधे के बोझ से कम नहीं होता। एन सी.ई.आर टी. की पुस्तकें बहुत खर्च करके विद्वज्जनों की बैठकों के बाद बनती हैं, जिसमें अनेकों गलतियाँ होती है, इन्हें नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। साथ ही परीक्षा पत्र व मूल्याकंन पद्धति भी शिक्षा के व्यवसायीकरण का एक कारण है। । नेताओं के सरंक्षण में पल रहे शिक्षक व शिक्षण सस्थाएँ शिक्षा के कर्णधार माने जाते हैं। फिर चाहे ये शिक्षा और देश की प्रतिभा को गिराएँ या उठाएँ, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इसको रोकने का उपाय है, वातावरण शिक्षामय हो, शिक्षक अनुशासन पूर्ण हो, पाठ्यक्रम में सुधार हो, शिक्षण सस्थांओं में शिक्षा ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो, सिफारिश के स्थान पर योग्यता को महत्त्व दिया जाए।
 
मैं आशा करती हूँ कि आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ !

 

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