give me one doha of kabir and guru nanak each
- 'Doha' by Guru Nanak:
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
दीन दयाल सदा दु:ख-भंजन, ता सिउ रुचि न बढाई।
नानक कहत जगत सभ मिथिआ, ज्यों सुपना रैनाई॥
- 'Doha' by Kabir:
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
- 'Doha' by Kabir:
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥