Gram Shri kavita ke maadhyam se yeh kaise kaha ja sakta hai ki saundarya kisi vyakti ya vastu mein nahi, hamare drishtikon mein hota hai?

मित्र यह बात सही है। हमारा किसी वस्तु, स्थान तथा व्यक्ति को लेकर दृष्टिकोण जैसा होगा, हम उसे वैसा ही बना देते हैं। यदि हमारा दृष्टिकोण सौंदर्य से भरा हुआ है, तो हमारे लिए कुरूप व्यक्ति भी सुंदर हो जाएगा। सुमित्रानंदन पंत की कविता को ही लीजिए। आप पूरी कविता को पढ़िए और सोचिए क्या आपने कभी प्रकृति को इस रूप में देखा है। प्रकृति का सौंदर्य सबको बहुत अच्छा लगता है। परन्तु उसके सौंदर्य को शब्दों में और अपनी कल्पना से बिल्कुल अलग ही रूप प्रस्तुत कर पाना सबके लिए संभव नहीं है। उसके लिए सुमित्रानंदन जैसा सुंदर दृष्टिकोण चाहिए। वह मटर तथा छीमी की फलियों, अमरूद के पेड़ों तथा सर्दी की धूप तक को सौंदर्य के रस से नहा देते हैं। अतः कह सकते हैं कि सौंदर्य हमारे दृष्टिकोण में होता।

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