gyan ki aandhi ka bhakt ke jivan par kya prabhav padta hai?

मित्र भक्त के जीवन में जब ज्ञान रूपी आँधी आती है, तो उसके हृदय व मन में स्थित विकारों का नाश होने लगता है। इस ज्ञान की आँधी ने आते ही भम्र रूपी सारे छप्परों को उड़ा डाला है। इसके कारण माया के सभी बन्धन भी खुल गए हैं। झूठा (मिथ्या) प्रेम, प्रभु को लेकर होने वाले सन्देह और मोह रूपी बालियाँ भी उखड़ गई हैं। तृष्णा रूपी छत भी इस आँधी में टूट गई है। उसमें रखी कुबुद्धि रूपी बर्तन टूट गए हैं। कबीर आगे कहते हैं कि सन्तों ने बड़े जतन और युक्ति से इस छप्पर को बाँधा है। इस छप्पर की छत से एक बूंद भी पानी नहीं टपकता है। जबसे प्रभु हरि की गति अर्थात्‌ उनके विषय में जाना है, तबसे शरीर में स्थित सारा कूड़ा-कचरा बाहर निकल गया है। कहते हैं आँधी के पश्चात्‌ वर्षा जिस प्रकार सभी को जल से भिगो डालती है, उसी प्रकार ज्ञान के आने से सभी जीवात्मा प्रेम के रस में सरोबर हो जाते हैं और भगत अपने ईश्वर के स्मरण में लीन हो जाते हैं। कबीर दास जी कहते हैं कि ज्ञान रूपी सूरज के निकलते (उदय) ही अज्ञान रूपी अंधकार खत्म हो गया है। भाव यह है कि जब मनुष्य के जीवन में ज्ञान का आगमन होता है तो उसके मन व हृदय से सन्देह, झूठा प्रेम आदि मिथ्या भाव व विकार नष्ट हो जाते हैं। मोह-माया के बंधनों से वह मुक्त हो जाता है। तृष्णा तक उस का कुछ नहीं बिगाड़ पाती। साधक प्रभु प्रेम में इतना रम जाता है कि सांसारिक, सुख-सुविधा, सुख-दुख उसको आहत व प्रसन्ना नहीं कर पाते। प्रभु-भक्ति में लगकर वह मन से व शरीर से निर्मल और पवित्र हो जाता है। यह सब मनुष्य के जीवन में ज्ञान के आने से ही सम्भव हो पाता है।  

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