hello ma'am good evening 

please mujhe ye chapter samaj me nahi aya hai to krapya kar mujhe ye kavya samajha dijiye

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संगतकार कविता मुशिकल नहीं है, इस कविता में कवि ने मुख्यगायक के पीछे बैठे संगतकार की दशा का वर्णन किया है।
इन पंक्तियों में कवि संगतकार की स्थिति के विषय में संकेत करते हुए कहते हैं कि मुख्यगायक के भारी स्तर के साथ जो मधुर पर कमजोर, काँपती हुई आवाज सुनाई दे रही है इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह संगतकार की आवाज है। वह रिश्ते में मुख्यगायक का भाई भी हो सकता है और उसका दूर का कोई रिश्तेदार भी जो संगीत सिखने के लिए बहुत दूर से मुख्यगायक के पास आता है। यह मुख्यगायक का शिष्य भी हो सकता है। कवि संगतकार की स्थिति को आगे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि बहुत पुराने समय से मुख्यगायक की आवाज के साथ संगतकार अपनी आवाज मिलाकर गा रहा है। संगतकार इसी तरह मुख्यगायक की मदद करता आया है। जब कभी गाते-गाते मुख्यगायक जटिल तानों में उलझ जाता है तब संगतकार ही स्थिति को संभालता है और मुख्यगायक को भटकने नहीं देता है। जब मुख्यगायक गाना गाते समय उसमें खो जाता है। ऐसी स्थिति में भी संगतकार मुख्यगायक को भटकने नहीं देता और स्थिति को बिगड़ने से बचा लेता है।
संगतकार मुख्यगायक की वैसी ही मदद करता है जैसे किसी व्यक्ति का सामान छूट गया हो और कोई अन्य व्यक्ति उसे उसका सामान लाकर दे दे। कई बार तो स्थिति ऐसी बन जाती है कि लगता है कि मुख्यगायक को यह याद दिला देता है जब वह बच्चा था और गायन की शिक्षा ले रहा था। अब भी वह ऐसी गलती करता है और मुख्यगायक गुरू की भांति उसे बचा लेता है। डबराल जी ऐसी स्थितियों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि स्थिति तब ज्यादा खराब हो जाती है जब मुख्यगायक तारसप्तक गाने के लिए बैठता है इसमें स्वर कहीं बहुत मध्यम होता है तो कहीं बहुत ऊँचा चला जाता है। उसका गला दुखने लगता है। उत्साह और प्रेरणा दोनों उसका साथ छोड़ने लगती है। स्वर बुझने लगता है। यहीं पर संगतकार बिगड़ती स्थिति को संभाल लेता है। ऐसा प्रतीत होता है मानों मुख्यगायक को संगतकार सांत्वना देता हुआ-सा उसका गिरता हुआ स्वर सम्भाल लेता है और उसके साथ गाने लगता है। कई बार तो ऐसा होता है कि वह मुख्यगायक के साथ बिना किसी कारण के स्वर में स्वर मिलाता हुआ गाता है। जैसे कह रहा हो आप अकेले नहीं हैं मैं भी आपके साथ हूँ और जो आपने पहले गाया है, हम उसे दोबारा गा सकते हैं। डबराल जी संगतकार की प्रशन्सा करते हुए कहते हैं कि संगतकार का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह मुख्यगायक के साथ गाता तो है परन्तु अपनी आवाज को मुख्यगायक की आवाज से ज्यादा अच्छा नहीं होने देता अर्थात्‌ उसकी आवाज कितनी ही मधुर और सुरीली क्यों न हो लेकिन वह उसे मुख्यगायक की आवाज के पीछे दबा लेता है। उसकी हिचक से यह साफ पता चल जाता है कि वह जानबूझकर ऐसा कर रहा है। कवि कहते हैं कि उसका यह कार्य सराहनीय है। हमें इसका यह आशय नहीं लगाना चाहिए कि वह संगीत में विफल है इसलिए धीरे गा रहा है। नहीं! वह तो एक महान व्यक्ति है जो जानबूझकर ऐसा कर रहा है।
 
मैं आशा करती हूँ कि आपके प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
 
ढेरों शुभकामनाएँ !

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