hindi me soordas ke pad ke charon pado ka matlab kya koimujhe jaldi se bata sakta hai?
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1. श्री कृष्ण जी के कहने पर उद्धव गोपियों को समझाने के लिए वृन्दावन जाते हैं। जहाँ उनकी गोपियों से बात होती है। गोपियाँ उद्धव की बात सुनकर बड़ी हैरान होती हैं। वे उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव तुम तो बड़े भाग्यशाली हो जो श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम से अछूते हो। तुम तो हमेशा उनके साथ रहते हो फिर भी तुम्हें उनसे प्रेम नहीं हुआ। वे कहती हैं कि तुम्हारी स्थिति वैसे ही है, जैसे जल के भीतर रहते हुए भी कमल के पत्ते पर पानी की एक बूंद नहीं ठहर पाती है। वे आगे कहती हैं कि तेल से भरी गगरी पानी में रहते हुए भी उसके प्रभाव से अछूती रही है। तुम्हारी हालत भी बिलकुल वैसी ही है। तुम पर उनके प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वे कहती हैं तुम्हारी श्री कृष्ण के रूप पर कभी दृष्टि नहीं पड़ी है तो तुम कैसे उनके प्रेम रूपी नदी में अपने पैर रखोगे। हम तो भोली व अबला गोपियाँ हैं जो उनके प्रेम में डूबी हुई हैं। हमारी तो उसी प्रकार की स्थिति है जैसे चींटियाँ गुड़ से चिपकी रहती है और कहीं नहीं जाती हैं। भाव यह है कि हम श्री कृष्ण के प्रेम में इतना रम गई हैं कि उनके सिवाए हमें कुछ और दिखाई नहीं देता। हम तो कृष्णमय हो गई हैं।
2.इन पंक्तियों में गोपियाँ उद्धव से कहती हैं, हे उद्धव! जबसे श्री कृष्ण गोकुल छोड़कर मथुरा गए हैं, वह विरह हमारे मन में ही रह गई है। उस पीड़ा को न कोई सुनने वाला है और न ही किसी से कहते बनता है। इसलिए हमने इस वेदना को हृदय में ही रख लिया है क्योंकि हम कृष्ण से शिकायत कर अपने प्रेम की मर्यादा का अपमान नहीं कर सकते हैं। जब श्री कृष्ण मथुरा गए थे तो जाते समय हमें शीघ्र आने का वचन देकर गए थे परन्तु वहाँ पहुँचकर न वे वापस आए और न ही अपने आने का सन्देश ही दिया। उन्होंने अपना या हमारा कुशल-क्षेम न तो भेजा और न ही पूछा। हम उनके वियोग रूपी अग्नि में तिल-तिल करके जल रहे हैं। वह कहती हैं उद्धव तुम्हारे योग के संदेश ने हमारी वियोग रूपी आग को और अधिक बढ़ा दिया है। अर्थात् तुम्हारा योग सन्देश आग में घी के समान काम कर रहा है। वह कहती हैं कि हम ऐसे व्यक्ति से गुहार लगाना चाहते हैं जो हमें श्री कृष्ण के विषय में जानकारी दे व उनका कुशल-क्षेत्र का समाचार हमें सुनाए तथा हमारा संदेश श्री कृष्ण के पास ले जाए। उनके धैर्य को धारण करने की शक्ति अब समाप्त हो चुकी है, इसका कारण है कि गोपियाँ कृष्ण के विरह में बुरी तरह जल रही हैं।
3. उद्धव द्वारा समझाए जाने पर गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव श्री कृष्ण हमारे लिए हारिल की लकड़ी के समान हैं। जिस प्रकार हारिल पक्षी लकड़ी के आश्रय को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार हम कृष्ण का आश्रय कभी नहीं छोड़ सकते हैं। भाव यह कि हारिल पक्षी अपने पंजों पर एक लकड़ी दबाए रहता है और वह यही सोचता है कि मैं पेड़ की शाखा पर बैठा हूँ। उसी तरह गोपियाँ श्री कृष्ण के प्रेम का आश्रय लिए रहती हैं। वह कहती हैं कि हमने अपने हृदय में मन, वचन व कर्म से श्री कृष्ण को अपना मान लिया है। हमने श्री कृष्ण नामक लकड़ी को दृढ़ता से पकड़ लिया है। अब तो यह हाल है कि हम सोते-जागते, स्वप्नावस्था तथा रात-दिन श्री कृष्ण श्री कृष्ण का ही स्मरण करते रहते हैं। वह कहती हैं कि उद्धव तम्हारे द्वारा दिया गया योग का उपदेश हमें ऐसे प्रतीत होता है मानों वह कड़वी ककड़ी के सामान है जिसे निगला नहीं जा सकता। गोपियाँ कहती हैं कि तुम हमारे लिए यह कौन सी बीमारी ले आए हो जिसे हमने न कभी देखा और न कभी सुना है। गोपियाँ उद्धव को कहती हैं कि इस योग के ज्ञान की आवश्यकता तो उन्हें हैं जिनके मन चकरी के समान घूमते रहते हैं। भाव यह है कि हमने अपने हृदय से श्री कृष्ण को अपना मान लिया है। अब हमारा मन एकचित होकर कृष्ण की भक्ति करता है। जिन लोगों का मन एक स्थान पर न लगकर यहाँ वहाँ घूमता रहता है, उन लोगों को योग की आवश्यकता होती है।
4. गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि कृष्ण ने द्वारिका जाकर राजनीति पढ़ ली है। तुम्हारे कहते ही हम यह समझ गईं हैं। पहले से ही कृष्ण चतुर हैं, अब तो राजनीति पढ़कर और भी चतुर हो गए हैं। उनकी बुद्धि कितनी तेज़ हो गई है, यह तो हमें पता चल गया है। उद्धव को हमें योग-संदेश पढ़ाने के लिए भेजा है। पहले समय के लोग बड़े भले लोग थे, जो परहित के लिए भागे चले जाते थे। अब हम अपने मन को वापस पा लेगीं, जिसे श्री कृष्ण ने चुरा लिया था। जिस श्रीकृष्ण ने अन्याय करने वालों से दूसरों को बचाया है, वह हमारे साथ अन्याय क्यों कर रहे हैं। गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव! यह राजधर्म नहीं है। राजा का धर्म है कि वह प्रजा को सता नहीं सकता है।
ढेरों शुभकामनाएँ!