मैं देश के एक महानगर के अति व्यस्त और आधुनिक क्षेत्र में रहती हूँ। उस का वातावरण किसी ग्राम्य क्षेत्र से बिलकुल भिन्न है। यहां चौड़ी-पक्की सड़कें हैं जो चौबीसों घंटे वाहनों के शोर से भरी रहती है। यहां तो आधी रात को भी सड़कों से शोर दूर नहीं होता। दिन के समय तो बहुत भीड़ होती है। सजे-संचरे लोग दिखावे से भरा जीवन जीने की कोशिश में लगे रहते हैं। सब तरफ बड़ी-बड़ी दुकानें हैं; शोरूम हैं; बड़े-बड़े मल्टीप्लैक्स हैं। लंबी-लंबी गाड़ियों की भरमार है। यहाँ प्रकृति की सुंदरता नहीं है। कहीं-कहीं गमलों में कुछ पौधे अवश्य दिखाई दे जाते हैं। ऊंची गगन चुंबी इमारतें हैं। मेरे नगर से कुछ दूरी पर एक नदी है पर वह बुरी तरह से प्रदूषित है। नगर के उद्योग-धंधों का कचरा उसी में गिरता है। वास्तव में गांव के साफ-सुथरे वातावरण से मेरे नगर की कोई तुलना नहीं है।