बिहारी ने जगत को तपोवन क्यों कहा है और इससे क्या संदेश देना चाहा हैं ?
मित्र!
हमारे एक मित्र ने आपके प्रश्न का उत्तर दिया है। इसमें व्याकरण सम्बन्धी कुछ त्रुटियाँ हैं। हम इसको शुद्ध रूप में दे रहे हैं।
तपोवन का अर्थ है, जहाँ तप किया जाता है | वहां आपसी प्रेमभाव और मित्रता का वातावरण रहता है। तपोवन में कोई किसी का बैरी नहीं होता और वहाँ किसी की किसी के साथ शत्रुता नहीं होती है | कवि ने जगत को तपोवन की तरह माना है क्योंकि वन में सभी प्राणी आपसी तकरार भूलकर भयंकर गर्मी में एक साथ पेड़ों की छाया में बैठते हैं| इससे यह सन्देश मिलता है कि जब पशु अपनी शत्रुता भूल कर एक साथ रह सकते हैं तो मनुष्य क्यों नहीं रह सकता।
हमारे एक मित्र ने आपके प्रश्न का उत्तर दिया है। इसमें व्याकरण सम्बन्धी कुछ त्रुटियाँ हैं। हम इसको शुद्ध रूप में दे रहे हैं।
तपोवन का अर्थ है, जहाँ तप किया जाता है | वहां आपसी प्रेमभाव और मित्रता का वातावरण रहता है। तपोवन में कोई किसी का बैरी नहीं होता और वहाँ किसी की किसी के साथ शत्रुता नहीं होती है | कवि ने जगत को तपोवन की तरह माना है क्योंकि वन में सभी प्राणी आपसी तकरार भूलकर भयंकर गर्मी में एक साथ पेड़ों की छाया में बैठते हैं| इससे यह सन्देश मिलता है कि जब पशु अपनी शत्रुता भूल कर एक साथ रह सकते हैं तो मनुष्य क्यों नहीं रह सकता।