कभी - कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नज़र आता है उस समयसंगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्टकीजिए।

तारसप्तक में गायन करते समय मुख्य गायक का स्वर बहुत ऊँचाई तक पहुँच जाता है। जिसके कारण स्वर के टूटने का आभास होने लगता है और इसी कारण वह अपने कंठ से ध्वनि का विस्तार करने में कमज़ोर हो जाता है। परन्तु संगतकार स्वयं के स्वर को उसके स्वर के साथ जोड़ देता है व उसके स्वर के टूटने के कारण जो खालीपन आता है, अपने स्वरों द्वारा उसके खालीपन को भर देता है।

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