दीवानों की हस्ती कविता में ‘दीवाने’ किन्हें और क्यों कहा गया है?
मित्र हम आपको उत्तर लिखकर दे रहे हैं।
'दीवानों की हस्ती' पाठ में कवि ने ऐसे लोगों का वर्णन किया है, जो फक्कड़ और दीवाने किस्म के हैं। उनके लिए समाज के नीति-नियमों का कोई महत्व नहीं है। मनुष्य की सेवा करना वे अपना कर्तव्य समझते हैं और सबसे समान भाव से प्रेम करते हैं। कवि के अनुसार लोग स्वयं को बेकार के बंधनों में उलझाकर रखते हैं। ऐसे लोग स्वहितों में अपना सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं। दीवाने किसी बंधन में बँधकर एक स्थान पर नहीं रहना चाहते। वे स्वयं को सभी बंधनों से मुक्त रखना चाहते हैं। वह जहाँ भी जाते हैं, प्यार बाँटते हुए जाते हैं।
'दीवानों की हस्ती' पाठ में कवि ने ऐसे लोगों का वर्णन किया है, जो फक्कड़ और दीवाने किस्म के हैं। उनके लिए समाज के नीति-नियमों का कोई महत्व नहीं है। मनुष्य की सेवा करना वे अपना कर्तव्य समझते हैं और सबसे समान भाव से प्रेम करते हैं। कवि के अनुसार लोग स्वयं को बेकार के बंधनों में उलझाकर रखते हैं। ऐसे लोग स्वहितों में अपना सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं। दीवाने किसी बंधन में बँधकर एक स्थान पर नहीं रहना चाहते। वे स्वयं को सभी बंधनों से मुक्त रखना चाहते हैं। वह जहाँ भी जाते हैं, प्यार बाँटते हुए जाते हैं।