अब दिक्क्त यहाँ ये हो गई कि झाडू़ केवल एक ही थी और तनख्वाह लेनेवाले उम्मीदवार बहुत, इसलिए छीना-झपटी में क्षण-भर में ही झाडू़ के पुर्जे-पुर्जे उड़ गए। जितनी सींके जिसके हाथ पड़ीं, वह उनसे ही उलटे-सीधे हाथ मारने लगा।   जिसके हाथों में झाड़ू की जितनी तीलियाँ लगी, वह उलटे-सीधे हाथ उन तीलियों को इकठ्ठा करने लगा। ये सब नज़ारा देख कर लेखिका की अम्मा ने अपने सिर पर हाथ रख दिया। बच्चों को ना जाने कहाँ से ये बात याद आ गई कि असल में झाड़ू देने से पहले जरा-सा पानी छिड़क लेना चाहिए। बस, ये विचार मन में आते ही बच्चों ने तुरंत दरी पर पानी छिड़कना शुरू कर दिया। अब एक तो वैसे ही हर जगह धूल-ही-धूल फैली हुई थी और बच्चों के पानी डालने से सारी धूल कीचड़ के रूप में बदल गई।अब सभी बच्चों को आँगन से भी निकाला गया क्योंकि उन्होंने काम करने की जगह बहुत काम बढ़ा दिया था। आँगन से निकाले जाने के बाद बच्चों ने तय किया कि अब पेड़ों को पानी दिया जाए। बस, फिर क्या था सभी बच्चों ने सारे घर की बालटियाँ, लोटे, तसले, भगोने, पतीलियाँ लूट ली और जिनके हाथ इन में से कोई भी चीज नहीं लगी उन्होंने डोंगे-कटोरे और गिलास ही ले लिए और पेड़ों को पानी देने चल पड़े।

 क) झाड़ू के पुर्जे पुर्जे उड़ने से क्या तात्पर्य है? झाड़ू लगाने से पहले बच्चों के मन में कौन सी बात आई?
ख) क्या बच्चों को आंगन से निकाला जाना उचित था? कारण सहित बताइए।
ग) अम्मा ने सिर पर हाथ क्यों रख लिया?

प्रिय मित्र,
हम सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकते हैं। हम आपको पहले प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं। वह इस प्रकार है-

(क) झाड़ू के पुर्जे-पुर्जे उड़ने से तात्पर्य झाड़ू के टूटने से है। बच्चों ने छीना-झपटी में सारा झाड़ू तोड़ दिया। झाड़ू लगाने से पहले बच्चों के मन में बात आई कि झाड़ू लगाने से पहले थोड़ा पानी छिटक लेना चाहिए।

आशा करते हैं कि आपको प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।

धन्यवाद।  

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