"तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में" काअर्थ

मित्र इस पंक्ति में कवि कहना चाहता है कि वह सुख के दिनों में भी सिर झुकाकर ईश्वर को याद रखना चाहता है, वह एक पल भी ईश्वर को भुलाना नहीं चाहता।

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