यह मुस्कान नही, इसमें उपहास है, व्यंग्य है......लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ( पाठ - पर्मचंद के फटे जूते )
प्रेमचंद की दशा बहुत ही खराब थी। फोटो में उनके जूते के हालत देख पता चलता था। ऐसी विषम परिस्थिति में यदि मनुष्य मुस्कुरा रहा है, तो उसकी मुस्कुराहट में बहुत कुछ छिपा हुआ था। अतः लेखक उनकी मुस्कुराहट में समाज की हंसी उड़ाने तथा व्यंग्य करने का भाव देखता है।