holi par kavitaye

 आज के दिन इस दुनिया में, फिर बंदूक चलेगी

कहीं निकलेगी गोली इससे, और कहीं होली मनेगी।

कहीं पे बच्चे ले के घूमें, बंदुकनुमा पिचकारी
और देखो कहीं पे गूँजें, बच्चों की सिसकारी।

रंग वही है लाल सब जगह, मगर फर्क है इतना
एक रंग से नफरत फैले, दूजे में प्यार है कितना।

आओ मिला दें सब रंगों को, हर दिल में प्यार जगा दें
अगली होली से पहले, हम नफरत दूर भगा दें।

कहे ‘तरूण’ इस होली देखो, सुंदर प्यारा सपना
सबके दिल में प्यार बढे, सागर में पानी जितना।

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नमस्कार मित्र!
हमारे मित्र ने बहुत अच्छी कविता दी है। यह आपकी सहायता अवश्य करेगी।
 
आपकी सहायता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
 
ढेरो शुभकामनाएँ!

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hey tejal u got the ans

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ya!

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thank you very much!

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