how to identify अनिश्च यवाचक सर्वनाम  

मित्र आप इसके लिए हमारी वेबसाइमित्रता एक अनमोल धन है। यह ऐसी धरोहर है जिसका मूल्य लगा पाना सम्भव नहीं है। इस धन व धरोहर के सहारे मनुष्य कठिन से कठिन समय से भी बाहर निकल आता है। इस धन का मुख्य भाग है हमारा 'मित्र'। हर बीमारी का इलाज मनुष्य को भगवान द्वारा परिवार मिलता है परन्तु मित्र वह स्वयं बनाता है। जीवन के संघर्षपूर्ण मार्ग पर चलते हुए उसके साथ उसका मित्र कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चलता है। हर व्यक्ति को मित्रता की आवश्यकता होती है। वह चाहे सुख के क्षण हो या दुख के क्षण मित्र उसके साथ रहता है। वह अपने दिल की हर बात निर्भयता से केवल अपने मित्र से कह सकता है। किसी विशेष गुढ़ बात पर मित्र ही उसे सही सलाह देकर उसका मार्गदर्शन करता है। मित्र ही उसका सही अर्थों में सच्चा शुभचिंतक, मार्गदर्शक, शुभ इच्छा रखने वाला होता है। सच्ची मित्रता में प्रेम व त्याग का भाव होता है। मित्र की भलाई दूसरे मित्र का कर्त्तव्य होता है। वह जहाँ एक ओर माता के धैर्य के समान उसे संभालता है तो पिता के जैसे शशक्त कन्धों का सहारा देता है। सच्चा मित्र वही कहलाता है जो विपत्ति के समय अपने मित्र के साथ दृढ़-निश्चय होकर खड़ा रहता है। रहीम जी ने कहा है– कह रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। बिपत्ति-कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।। मित्रता के अनकों उदाहरण आपको इतिहास में ही मिल जाएँगे। कृष्ण व सुदामा की मित्रता, जहाँ अपने मित्र की करुणदशा देखकर कृष्ण ने सुदामा के नहीं अपितु अपने मित्र के पूरे गाँव को ही धन व वैभव से भर दिया था। सुग्रीव व श्री राम की मित्रता जहाँ श्री राम ने सुग्रीव की मदद पर बाली का बध किया व उसे उसका खोया हुआ राज्य भी वापस दिलाया, वहीं दूसरी ओर सुग्रीव ने सीता को ढूढ़ने व रावण से युद्ध करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। इनकी मित्रता समाज में आदर्श-मित्रता थी। हमें चाहिए कि जब भी किसी को अपना मित्र बनाए तो सोच-विचार कर बनाए क्योंकि जहाँ एक सच्चा मित्र आपका साथ दे आपको ऊँचाई तक पहुँचा सकता है। कपटी मित्र अपने स्वार्थ के लिए आपको पतन के रास्ते पर पहुँचा भी सकता है। जो आपके मुँह पर आपके सगे बने और पीठ पीछे आपकी बुराई करे ऐसी मित्रता को नमस्कार कहने में ही भलाई है।

  • 0
What are you looking for?