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hello,

i want a dialogue or drama based on the enire lesson of baalgobin bhagat!!! urgent plzz by 2morrow latest!!

नमस्कार मित्र!
आपके लिए हम बाल गोबिन भगत के लिए कुछ संवाद और उसका नाट्य रूपांतरण करके दे रहें हैं। परन्तु समय की कमी के कारण पूरा नाटक और संवाद हम आपको लिखकर नहीं दे सकते हैं।
 
प्रात:काल के समय सूरज ने अभी अँगड़ाई लेना शुरू ही किया है, चिड़ियों का करवल सुनाई देने लगा है। ठण्ड की सिहरन तन को अकड़ा रही है कि कहीं से कबीर के दोहों का सुंदर वाचन सुनाई दे रहा है। खंजड़ी की मधुर आवाज़ दोहों में घुलकर मुझे अपनी और खींच रही हैं। मेरे पाँव किसी जादुई शक्ति से बंधे उस आवाज़ की ओर खींचे चले जाते हैं।
 
बाल गोबिन भक्त- (गाते हुए चौंक जाते हैं) अरे! कौने में क्यों खड़े हो, यहाँ आओ।
 
लेखक- (हड़बड़ाते हुए) काका! प्रणाम। इतनी सुबह सवेरे गायन।
 
बाल गोबिन भक्त- (हँसते हुए) हाँ! हम ठहरे भक्त, उसकी भक्ति ही मन को संतोष देती है।
 
लेखक- (हैरानी के भाव से) लेकिन इतनी ठंड में, इस तरह तो आपको तबीयत खराब हो जाएगी।
 
बाल गोबिन भक्त- (संतोष के साथ कहते हैं) बेटा हम साधुओं के लिए सब मौसम एक से हैं। उसके बनाए मौसम है उनसे क्या डरना।
 
लेखक- काका! ये तो कोई बात नहीं हुई
 
आगे का आप स्वयं लिखकर देखिए। ये इतना कठिन नहीं है। जैसे मैंने प्रयास किया है आप भी इसी तरह प्रयास कीजिए।
 
 
ढेरों शुभकामनाएँ!

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