i cant understand the chapter can u explain it in short.
आप इस सारांश को पढ़िए आशा करते हैं कि यह आपकी शकाओं को मिटा देगी।
'संस्कृति' पाठ में लेखक भदंत आनंद कौसल्यायन ने संस्कृति और सभ्यता के उद्भव, विकास, भेद, महत्व और परिभाषा पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। उन्होंने इस पाठ में विभिन्न माध्यमों द्वारा हमें समझाने का प्रयास किया है कि संस्कृति और सभ्यता क्या होती हैं? इनका हमारे जीवन में क्या महत्व है? यह हमें कैसे प्राप्त होती हैं इत्यादि। उनके अनुसार सभ्यता मनुष्य द्वारा स्थापित वह सामाजिक व्यवस्था है, जो मनुष्य के जीवन को आसान व सुखी बना देती है। इसके विपरीत संस्कृति का अर्थ हमारे द्वारा किया गया चिंतन-मनन और कलात्मक चीजों के निर्माण की क्रिया हैं, जो मनुष्य के जीवन को समृद्ध बनाने में सहायक है। इससे पता चलता है कि हमारे द्वारा किए गए सभी आविष्कार संस्कृति के विषय क्षेत्र में आते हैं। सभ्यता के विषय क्षेत्र में इनका कैसे प्रयोग किए जाए और इनकी सहायता लेकर मानव जाति का भला किस प्रकार हो, वह सभ्यता के विषय क्षेत्र में आता है। संस्कृति हमारे जीवन के लिए नियमों, सिद्धांतों और आदर्शों को तय करती है। इसके विपरीत सभ्यता इन नियमों, सिद्धांतों और आदर्शों को समाज में जीवित रखने का कार्य करती है। लेखक के अनुसार जो संस्कृति या सभ्यता मनुष्य के अनिष्ट का कारण बने, उसे हम संस्कृति या सभ्यता की संज्ञा नहीं दे सकते हैं।