i have a hindi elocution coming soon on 'santosh sabsae bada dhan' for thAT COULD ANY ONE JUST GIVE ME ONE PARAGRAPH ON THIS TOPIC 

हम आपको इस विषय पर कुछ पंक्तियाँ दे रहे हैं बाकी आप इसे स्वयं करने का प्रयास करें-

आज का समय भागमभाग वाला है। आज का मनुष्य इतना व्यस्त  है कि उसके पास सोने के लिए भी पर्याप्त समय नहीं होता। वह सुबह से लेकर आधी रात तक भागता रहता है। उसे सबसे आगे निकलना है। भीड़ में अलग दिखना है। सबसे शीर्ष पर पहुँचना है। ऐसी चाहते, उसे व्यस्त बना रही हैं। परिवार है परन्त उनके पास रहने के लिए समय नहीं। घर है परन्तु उसमें आराम से बैठने के लिए समय नहीं। विभिन्न तरह के स्वादिष्ट व्यंजन है परन्तु उसे खाने के लिए समय नहीं है। घर जाते हुए मार्ग में समय नष्ट नहीं करता है। बस में या गाड़ी में समाचार पढ़ते हुए व्यतीत करता है। अपनो के साथ खुलकर हँसा कब था यह भी उसे याद नहीं रहता। ऐसा जीवन धन, मान और यश तो देता परन्तु संतोष, आराम और ठहराव नहीं देता है। मानसिक तनाव और सौ तरह की बीमारियाँ उसे घेरे रहती हैं। हर समय स्वयं को अकेला पाता है। संतोष ऐसा गुण है, जो मनुष्य के मन में घर कर गया तो सारी परेशानियाँ और कठिनाईयाँ स्वतः ही दूर भाग जाती हैं। आज के भागदाैड़ भरे युग में मनुष्य के पास सबकुछ है। परन्तु अगर कछ नहीं है, तो वह है संतोष। यही कारण है कि वह असंतोषी-सा, यहाँ-वहाँ भटकता नज़र आ रहा है। किसी को धन कमाना है, तो किसी को यश, किसी को दोनों चाहिए। इन सब बातों के कारण असंतोष की भावना उसे मन ही मन तड़पाती रहती है। हमारे बड़े-बुजुर्ग यही कहते हैं कि जो मिलता है, उसमें संतुष्ट रहे। क्योंकि संतुष्टि हर इच्छा को समाप्त कर देती है। जिसमें संतोष है, उसके पास सब है। जिसमें संतोष ही नहीं है, उसके पास सब होते हुए भी कुछ नहीं है।​...............................

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