i want an essay on shiksha ratant vidhya nahin hai in hindi. it means "education is not only about cramming and qualifying exams"

 learning the education can not be done by means of cramming, it has to be learnt by all means begning from the root of the subject, just lika educating a PARROT, can't go further long way and develop his mind.therefore we have to learn broadly in our own language of mind so that it be preserved for a long time and also give benefit to others.

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I wamt speech on shiksha ratant vidhya nhi hai
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me too 
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नमस्कार मित्र!
शिक्षा मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा उसे सभ्य और विद्वान बनाती है। शिक्षा ही वह माध्यम है जो उसे जीविका के साधन देती है और आत्मनिर्भर बनाती है। शिक्षित व्यक्ति का मान-सम्मान बढ़ाने में शिक्षा का बहुत योगदान है। किसी व्यक्ति के बाल्यकाल से ही उसकी शिक्षा के लिए माता-पिता द्वारा प्रयास आरंभ हो जाते हैं। वे उसके भावी सुनहरे भविष्य के लिए उसे अच्छे विद्यालय में पढ़ाने का प्रयास करते हैं। हर वह सुविधा प्रदान करते हैं जिससे वह अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सके।
प्राचीन समय में विद्यार्थी आश्रमों में जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे। वे घरों से दूर वनों में बने आश्रमों में विद्या अध्ययन करते थे। इस तरह की विद्या प्राप्ति में गुरू के निकट रहकर वे शांत और दृढ़ मन से अध्ययन करता था। शिक्षा का स्तर भी बहुत ही उत्तम हुआ करता था। गुरू के समीप रहने के कारण वह भली-भांति अध्ययन किया करता था। उनका पूरा ध्यान शिक्षा ग्रहण करने में ही होता था। आगे चलकर वे विद्वान या वीर बनते थे। अर्जुन, चाणक्य आदि ऐसे ही महान योद्धा और विद्वान थे। परन्तु समय बदल रहा है।
आज बच्चे अपने घर के समीप बने किसी विख्यात विद्यालय में जाकर शिक्षा ग्रहण करता है। उसे विद्यालय में जो कुछ पढ़ाया जाता है, उसे घर पर रहकर अध्ययन करने के लिए कहा जाता है। एक शिक्षक बच्चे से यही आशा करता है कि उसका विद्यार्थी उसके पढ़ाए पाठ को घर में जाकर अध्ययन करेगा। परन्तु ऐसा नहीं होता। बच्चे घर जाकर पाठ का अध्ययन नहीं करते हैं। वह घर जाकर अपना अधिकतर समय खेलकूद और कंप्यूटर में व्यतीत कर देते हैं। परीक्षा समीप आने पर वह गुरू द्वारा कराए गए पाठों को रटना आरंभ कर देते हैं। स्थिति तब गंभीर हो जाती है जब रटा हुआ, सब उन्हें भूल जाता है, जो उन्होंने तोते की तरह रटा हुआ होता है। यदि प्रश्न में जरा-सा फेरबदल होता है, तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। परिणाम अनुत्तीर्ण होना।
रटना शिक्षा नहीं है, यह तो शिक्षा के नाम पर खाना पूर्ति है। जो विद्यार्थी सच में शिक्षा ग्रहण करने का इच्छुक होता है, वह अपनी शिक्षा को गंभीरता से लेता है। अध्यापकों द्वारा पढ़ाए गए पाठ को विद्यालय से आकर घर पर पढ़ता है। यदि एक पाठ को भली-भांति पढ़ा जाए या उसका अध्ययन किया जाए, तो वह सरलता से याद हो जाता है। गणित विषय के प्रश्नों का बार-बार अभ्यास करने से ही वह हल होते हैं। यही शिक्षा ग्रहण करने का मंत्र है। जो अभ्यास के स्थान पर रटता है, वह जीवन में उपाधियाँ (डिग्रियाँ) तो प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। हम रटने से उत्तीर्ण तो हो सकते है परन्तु एक योग्य विद्यार्थी नहीं बन सकते। अच्छी तरह से प्राप्त की गई शिक्षा जीवन में बहुत काम आती है परन्तु जिसने रटना सीखा हो, वह कुछ और नहीं सीख सकता है। यह तो वही कहावत हो जाती है- आगे दौड़, पीछे छोड़। इसलिए सभी यही कहते हैं रटना शिक्षा नहीं है।

ढेरों शुभकामनाएँ!
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