i want the bhavarth of starting two paragraphs of 'ram laxman parshuram samvad'  ..plz  give it as soon as possible its urgent ...

नमस्कार मित्र!

आपकी विशेष प्रार्थना पर मैं आपको आरंभ के दोनों दोहों की हिन्दी में व्याख्या दे रही हूँ।

1. शिव धनुष तोड़े जाने के पश्चात्‌ परशुराम जी क्रोध में भरे हुए स्वयंवर सभा में पहुँचे। उनको क्रोध में जानकर श्री राम उनके क्रोध को शांत करने के लिए बोले, हे प्रभु! शिव धनुष को जिसने भी तोड़ा है, वह आपका कोई एक दास ही होगा। यदि कोई आज्ञा है, तो आप मुझे क्यों नहीं कहते। श्री राम की इस प्रकार की बातों ने परशुराम के क्रोध में घी के समान काम किया। यह सुनकर परशुराम जी क्रोधित होकर बोले-सेवक वह कहलाता है, जो सेवा का काम करता है। मेरे प्रिय आराध्य का धनुष तोड़ने वाले ने शत्रु का काम किया है इसलिए उससे लड़ाई करनी चाहिए। परशुराम जी श्री राम को सम्बोन्धित करके कहते हैं- हे राम सुनो!जिसने मेरे आराध्य देव शिव का यह धनुष तोड़ा है, वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। मुनिवर आगे क्रोध में कहते हैं, जिसने इस धनुष को तोड़ा है, वह इस सभा में बैठे हुए व्यक्तियों से अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराए और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले - हे गोसाई हमने अपने बालपन में ऐसी बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डाली हैं परन्तु आजतक किसी ने हम पर इतना क्रोध नहीं किया। आपकी इस धनुष पर किस कारण से ममता है? लक्ष्मण जी के इस तरह के वचन सुनकर भृगुवंश की ध्वजा के समान परशुरामजी क्रोधित होकर बोले अरे राजकुमार। काल के वश में होने के कारण तुझे बोलने का कुछ भी होश नहीं है। इस सारे संसार में विख्यात यह शिवाजी का धनुष तुझे साधारण धनुही के समान नजर आता है। 


 

2.लक्ष्मण जी ने हँसते हुए कहा। हे मुनिवर सुनिए हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान ही हैं। इसे तोड़ने में हमें क्या लाभ व हानि हो सकती है। श्री राम ने तो इसे नए के धोखे में तोड़ दिया है। इसमें रघुपति श्री रामचन्द्र का कोई दोष नहीं है। उनके छुते ही यह धनुष स्वयं ही टूट गया। हे मुनिवर आप तो व्यर्थ में ही क्रोधित हो रहे हैं। परशुराम जी अपने फरसे की ओर देखकर बोले-हे मुर्ख, तुझे मेरे स्वभाव के बारे में कुछ नहीं पता है। परशुराम जी आगे बोले तुझे बालक समझकर मैंने अभी तक तेरा वध नहीं किया है। तू मुझे केवल मुनि ही समझता है। मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यन्त क्रोधी स्वभाव का हूँ। इस संसार में क्षत्रिय कूल के द्रोही के नाम से जाना जाता हूँ। मैंने कितनी ही बार इस पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दिया है और इसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया है। परशुराम जी कहते हैंहे मूर्ख राजकुमार सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को देख। तू अपने माता-पिता के विषय में सोच अर्थात्‌ तेरे माता-पिता तेरी मृत्यु पर शोक करें ऐसी स्थिति मत प्रकट कर। मेरा फरसा इतना भयानक है जिसके डर से गर्भ के बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं। 

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 thats really nice thanku mam

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