i want the means of sakhiya of kabir das from cbse hindi book"kshitij" ......plz plz help me
१ . कबीर कहते हैं कि ह्दय रूपा मानसरोवर के जल में साधु रूपी हंस क्रीड़ा रूपी साधना कर रहे हैं। वहाँ उन्होंने मुक्ती रूपी मुक्ताफल ( मोती ) चुग लिए हैं। वहाँ उन्हें इतना आनंद आता है कि कहीं ओर जाने का उनका मन नहीं करता है।
२ . कबीर कहते हैं कि वह अपने प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूँढ रहे हैं , परन्तु उनका प्रेमी उन्हें कहीं नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं प्रेमी और भक्त के मिलने पर सभी प्रकार का विष ( कष्ट ) अमृत ( सुख ) के समान हो जाएगा।
३ . कबीर कहते हैं मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलिचा बिछाना चाहिए। ऐसा करने पर कुत्ता रूपी संसार भौंकता रहेगा उसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वह स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएगा।
४ . कबीर कहते हैं पक्ष - विपक्ष के कारण सारा संसार आप में लड़ रहा है , वह भ्रम में पड़ते हुए प्रभु को भूल जाते हैं। जो व्यक्ति निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा रहता है , वही सही अर्थों में मनुष्य है।
५ . कबीर कहते हैं कि हिन्दू सारी उम्र राम - राम जपते हुए और मुस्लिम खुदा - खुदा कहते हुए मर जाते हैं। कबीर कहते हैं , वही मनुष्य इस संसार में जीवित के समान हैं , जो इन दोनों ही बातों से स्वयं को दूर रखता है।
६ . कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
७ . कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से किसी के कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। यदि वह बुरे कार्य करता है , तो उसका ऊँचा कुल अनदेखा कर दिया जाता है , उसी प्रकार सोने के कलश में रखी हुई शराब को साधू द्वारा निदंनीय ही कहा जाता है अर्थात शराब सोने के कलश में रखने पर भी शराब ही कहलाती है।
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१ . कबीर कहते हैं कि ह्दय रूपा मानसरोवर के जल में साधु रूपी हंस क्रीड़ा रूपी साधना कर रहे हैं। वहाँ उन्होंने मुक्ती रूपी मुक्ताफल ( मोती ) चुग लिए हैं। वहाँ उन्हें इतना आनंद आता है कि कहीं ओर जाने का उनका मन नहीं करता है।
२ . कबीर कहते हैं कि वह अपने प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूँढ रहे हैं , परन्तु उनका प्रेमी उन्हें कहीं नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं प्रेमी और भक्त के मिलने पर सभी प्रकार का विष ( कष्ट ) अमृत ( सुख ) के समान हो जाएगा।
३ . कबीर कहते हैं मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलिचा बिछाना चाहिए। ऐसा करने पर कुत्ता रूपी संसार भौंकता रहेगा उसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वह स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएगा।
४ . कबीर कहते हैं पक्ष - विपक्ष के कारण सारा संसार आप में लड़ रहा है , वह भ्रम में पड़ते हुए प्रभु को भूल जाते हैं। जो व्यक्ति निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा रहता है , वही सही अर्थों में मनुष्य है।
५ . कबीर कहते हैं कि हिन्दू सारी उम्र राम - राम जपते हुए और मुस्लिम खुदा - खुदा कहते हुए मर जाते हैं। कबीर कहते हैं , वही मनुष्य इस संसार में जीवित के समान हैं , जो इन दोनों ही बातों से स्वयं को दूर रखता है।
६ . कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
७ . कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से किसी के कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। यदि वह बुरे कार्य करता है , तो उसका ऊँचा कुल अनदेखा कर दिया जाता है , उसी प्रकार सोने के कलश में रखी हुई शराब को साधू द्वारा निदंनीय ही कहा जाता है अर्थात शराब सोने के कलश में रखने पर भी शराब ही कहलाती है।
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कबीर कहते हैं कि ह्दय रूपा मानसरोवर के जल में साधु रूपी हंस क्रीड़ा रूपी साधना कर रहे हैं। वहाँ उन्होंने मुक्ती रूपी मुक्ताफल ( मोती ) चुग लिए हैं। वहाँ उन्हें इतना आनंद आता है कि कहीं ओर जाने का उनका मन नहीं करता है।
२ . कबीर कहते हैं कि वह अपने प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूँढ रहे हैं , परन्तु उनका प्रेमी उन्हें कहीं नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं प्रेमी और भक्त के मिलने पर सभी प्रकार का विष ( कष्ट ) अमृत ( सुख ) के समान हो जाएगा।
३ . कबीर कहते हैं मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलिचा बिछाना चाहिए। ऐसा करने पर कुत्ता रूपी संसार भौंकता रहेगा उसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वह स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएगा।
४ . कबीर कहते हैं पक्ष - विपक्ष के कारण सारा संसार आप में लड़ रहा है , वह भ्रम में पड़ते हुए प्रभु को भूल जाते हैं। जो व्यक्ति निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा रहता है , वही सही अर्थों में मनुष्य है।
५ . कबीर कहते हैं कि हिन्दू सारी उम्र राम - राम जपते हुए और मुस्लिम खुदा - खुदा कहते हुए मर जाते हैं। कबीर कहते हैं , वही मनुष्य इस संसार में जीवित के समान हैं , जो इन दोनों ही बातों से स्वयं को दूर रखता है।
६ . कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
७ . कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से किसी के कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। यदि वह बुरे कार्य करता है , तो उसका ऊँचा कुल अनदेखा कर दिया जाता है , उसी प्रकार सोने के कलश में रखी हुई शराब को साधू द्वारा निदंनीय ही कहा जाता है अर्थात शराब सोने के कलश में रखने पर भी शराब ही कहलाती है।
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कबीर कहते हैं कि ह्दय रूपा मानसरोवर के जल में साधु रूपी हंस क्रीड़ा रूपी साधना कर रहे हैं। वहाँ उन्होंने मुक्ती रूपी मुक्ताफल ( मोती ) चुग लिए हैं। वहाँ उन्हें इतना आनंद आता है कि कहीं ओर जाने का उनका मन नहीं करता है।
२ . कबीर कहते हैं कि वह अपने प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूँढ रहे हैं , परन्तु उनका प्रेमी उन्हें कहीं नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं प्रेमी और भक्त के मिलने पर सभी प्रकार का विष ( कष्ट ) अमृत ( सुख ) के समान हो जाएगा।
३ . कबीर कहते हैं मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलिचा बिछाना चाहिए। ऐसा करने पर कुत्ता रूपी संसार भौंकता रहेगा उसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वह स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएगा।
४ . कबीर कहते हैं पक्ष - विपक्ष के कारण सारा संसार आप में लड़ रहा है , वह भ्रम में पड़ते हुए प्रभु को भूल जाते हैं। जो व्यक्ति निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा रहता है , वही सही अर्थों में मनुष्य है।
५ . कबीर कहते हैं कि हिन्दू सारी उम्र राम - राम जपते हुए और मुस्लिम खुदा - खुदा कहते हुए मर जाते हैं। कबीर कहते हैं , वही मनुष्य इस संसार में जीवित के समान हैं , जो इन दोनों ही बातों से स्वयं को दूर रखता है।
६ . कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
७ . कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से किसी के कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। यदि वह बुरे कार्य करता है , तो उसका ऊँचा कुल अनदेखा कर दिया जाता है , उसी प्रकार सोने के कलश में रखी हुई शराब को साधू द्वारा निदंनीय ही कहा जाता है अर्थात शराब सोने के कलश में रखने पर भी शराब ही कहलाती है।
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कबीर कहते हैं कि ह्दय रूपा मानसरोवर के जल में साधु रूपी हंस क्रीड़ा रूपी साधना कर रहे हैं। वहाँ उन्होंने मुक्ती रूपी मुक्ताफल ( मोती ) चुग लिए हैं। वहाँ उन्हें इतना आनंद आता है कि कहीं ओर जाने का उनका मन नहीं करता है।
२ . कबीर कहते हैं कि वह अपने प्रेमी रूपी ईश्वर को ढूँढ रहे हैं , परन्तु उनका प्रेमी उन्हें कहीं नहीं मिल रहा है। वह कहते हैं प्रेमी और भक्त के मिलने पर सभी प्रकार का विष ( कष्ट ) अमृत ( सुख ) के समान हो जाएगा।
३ . कबीर कहते हैं मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलिचा बिछाना चाहिए। ऐसा करने पर कुत्ता रूपी संसार भौंकता रहेगा उसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वह स्वयं ही झक मारकर चुप हो जाएगा।
४ . कबीर कहते हैं पक्ष - विपक्ष के कारण सारा संसार आप में लड़ रहा है , वह भ्रम में पड़ते हुए प्रभु को भूल जाते हैं। जो व्यक्ति निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा रहता है , वही सही अर्थों में मनुष्य है।
५ . कबीर कहते हैं कि हिन्दू सारी उम्र राम - राम जपते हुए और मुस्लिम खुदा - खुदा कहते हुए मर जाते हैं। कबीर कहते हैं , वही मनुष्य इस संसार में जीवित के समान हैं , जो इन दोनों ही बातों से स्वयं को दूर रखता है।
६ . कबीर कहते हैं साधना की अवस्था में काबा काशी और राम रहीम के समान हो जाते हैं। जिस प्रकार गेहूँ को पीसने में वह आटा और बारीक पीसने में मैदा हो जाता है। परन्तु आते वह दोनों खाने के काम ही हैं। अर्थात दोनों ही एक ईश्वर की संताने हैं बस नाम अलग - अलग हैं।
७ . कबीर कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से किसी के कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं। यदि वह बुरे कार्य करता है , तो उसका ऊँचा कुल अनदेखा कर दिया जाता है , उसी प्रकार सोने के कलश में रखी हुई शराब को साधू द्वारा निदंनीय ही कहा जाता है अर्थात शराब सोने के कलश में रखने पर भी शराब ही कहलाती है।
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meaning is here
साखियाँ
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।
अर्थ - इस पंक्ति में कबीर ने व्यक्तियों की तुलना हंसों से करते हुए कहा है की जिस तरह हंस मानसरोवर में खेलते हैं और मोती चुगते हैं, वे उसे छोड़ कहीं नही जाना चाहते ठीक उसी तरह मनुष्य भी जीवन के मायाजाल में बंध जाता है और इसे ही सच्चाई समझने लगता है।
प्रेमी ढूंढ़ते मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।
अर्थ - यहां कबीर यह कहते हैं की प्रेमी यानी ईश्वर को ढूंढना बहुत मुश्किल है। वे उसे ढूंढ़ते फिर रहे हैं परन्तु वह उन्हें मिल नही रहा है। प्रेमी रूपी ईश्वर मिल जाने पर उनका सारा विष यानी कष्ट अमृत यानी सुख में बदल जाएगा।
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झक मारि।3।
अर्थ - यहां कबीर कहना चाहते हैं की व्यक्ति को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी करनी चाहिए और सहज साधना रूपी गलीचा बिछाना चाहिए। संसार की तुलना कुत्तों से की गयी है जो आपके ऊपर भौंकते रहेंगे जिसे अनदेखा कर चलते रहना चाहिए। एक दिन वे स्वयं ही झक मारकर चुप हो जायेंगे।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।4।
अर्थ - संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही अर्थों में मनुष्य है।
हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई।
कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।5।
अर्थ - कबीर ने कहा है की हिन्दू राम-राम का भजन और मुसलमान खुदा-खुदा कहते मर जाते हैं, उन्हें कुछ हासिल नही होता। असल में वह व्यक्ति ही जीवित के समान है जो इन दोनों ही बातों से अपने आप को अलग रखता है।
काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।
मोट चुन मैदा भया, बैठी कबीरा जीम।6।
अर्थ - कबीर कहते हैं की आप या तो काबा जाएँ या काशी, राम भंजे या रहीम दोनों का अर्थ समान ही है। जिस प्रकार गेहूं को पीसने से वह आटा बन जाता है तथा बारीक पीसने से मैदा परन्तु दोनों ही खाने के प्रयोग में ही लाए जाते हैं। इसलिए दोनों ही अर्थों में आप प्रभु के ही दर्शन करेंगें।
उच्चे कुल का जनमिया, जे करनी उच्च न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोई।7।
अर्थ - इन पंक्तियों में कबीर कहते हैं की केवल उच्च कुल में जन्म लेने कुछ नही हो जाता, उसके कर्म ज्यादा मायने रखते हैं। अगर वह व्यक्ति बुरे कार्य करता है तो उसका कुल अनदेखा कर दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार जिस तरह सोने के कलश में रखी शराब भी शराब ही कहलाती है।
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