साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय
is dohe ka arth samjhaiye .....
कवि कहता है कि साधु सूप के समान होना चाहिए।
जो अच्छी बातों या गुणों को अपने पास रहने दें और बेकार बात अर्थात अवगुणों को उड़ा दे।
जो अच्छी बातों या गुणों को अपने पास रहने दें और बेकार बात अर्थात अवगुणों को उड़ा दे।