???? ?? ??? ????????
Is topic par 2 minute ki speech chahiye.
Likha hua chahiye

प्रिय विद्यार्थी , 

आपके प्रश्न का उत्तर है - 
हमारे जीवन का मूल ही संतुष्टि है अर्थात हमारे जीवन में संतुष्टि का होना बहुत जरूरी है । जीवन में सुख और शांति होने के लिए भी संतुष्टि का होना आवश्यक है । जब तक हम अपने जीवन में संतुष्ट नहीं होंगे , हम सुखी नहीं हो सकते हैं । हमारे पास धन और संपत्ति का भंडार है लेकिन हम सुखी नहीं है क्योंकि हम अपने जीवन से संतुष्ट नहीं हैं । धन और संपत्ति की चाह हमेशा बढ़ती रहती है , यह हमें संतुष्ट नहीं कर सकती है । और इस संसार में जो संतुष्ट है , वही व्यक्ति सुखी है ।  इसी कारण से संतुष्टि को ही जीवन का मूल आधार माना गया है । 

इस आधार पर आप अपना Speech तैयार कर सकते हैं । 

आभार । 

  • 0

जीवन का मूल संतुष्टि

yeh topic hai
 

  • 1
Please find this answer

  • 0
What is the topic ? 
  • 2

जो लोग हमेशा असंतुष्ट रहते हैं, उनके जीवन में कभी भी सुख-शांति नहीं आती है, संतुष्ट लोग थोड़े से धन में भी हमेशा प्रसन्न रहते हैं 


वे लोग हमेशा सुखी रहते हैं जो हर हाल में संतुष्ट रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास सुख-सुविधा के सभी चीजें हैं, लेकिन वह असंतुष्ट है तो वह कभी खुश नहीं रह सकता है। संतुष्टि से सुख कैसे मिलता है, इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है।

किसी भी व्यक्ति को धन-संपत्ति से सुख नहीं मिलता है। जो लोग संतुष्ट रहते हैं, वही सुखी रहते हैं। अगर कोई धनी व्यक्ति असंतुष्ट है तो वह कभी भी सुखी नहीं हो सकता है।
  • 2

वे लोग हमेशा सुखी रहते हैं जो हर हाल में संतुष्ट रहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास सुख-सुविधा के सभी चीजें हैं, लेकिन वह असंतुष्ट है तो वह कभी खुश नहीं रह सकता है। संतुष्टि से सुख कैसे मिलता है, इस संबंध में एक लोक कथा प्रचलित है।

कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत को रास्ते में से एक स्वर्ण मुद्रा मिली। संत बहुत विद्वान थे। उन्हें धन और सुख-सुविधाओं का मोह नहीं था। इसीलिए उन्होंने सोचा कि ये स्वर्ण मुद्रा किसी व्यक्ति को दे देंगे।

संत कई दिनों तक स्वर्ण मुद्रा के लिए सबसे गरीब व्यक्ति को खोजते रहे, लेकिन उन्हें कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिल रहा था। तभी एक दिन संत ने देखा कि उनके राज्य का राजा पूरी सेना के साथ गुजर रहा था। संत ने पूछताछ की तो मालूम हुआ कि राजा दूसरे राज्य पर आक्रमण करने जा रहे हैं। ये बात मालूम होते ही संत ने तुरंत राजा के पास पहुंचे और राजा को वह स्वर्ण मुद्रा दे दी।

राजा ये देखकर हैरान हो गए कि एक संत उन्हें स्वर्ण मुद्रा क्यों दे रहे हैं। राजा ने इसका कारण पूछा। संत ने कहा कि कुछ दिन पहले मुझे ये मुद्रा रास्ते में मिली थी। तब मैंने सोचा था कि इसे किसी गरीब व्यक्ति को दे दूंगा। आज ये मुद्रा आपको दे रहा हूं।

ये सुनकर राजा क्रोधित हो गए। उन्होंने कि गुरुदेव मैं इस राज्य का राजा हूं, आप मुझे गरीब क्यों बोल रहे हैं?

संत बोले कि राजन् आपके पास अपार धन-संपत्ति है, किसी सुख-सुविधा की कमी नहीं है, फिर भी आप इतनी बड़ी सेना लेकर दूसरे राज्य पर अधिकार करने जा रहे हैं। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। जो लोग असंतुष्ट रहते हैं, उन्हें कभी भी सुख नहीं मिल पाता है। आपके पास इतना बड़ा राज्य है, लेकिन आप अंसतोष की वजह से ही दूसरे राज्य पर आक्रमण करने जा रहे हैं। आप दूसरों के धन पर अधिकार करने के युद्ध में नरसंहार करने को तैयार हैं, आपसे बड़ा गरीब कौन हो सकता है?

ये बात सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने संत को प्रणाम किया और सेना को वापस लौटने का आदेश दे दिया।

प्रसंग की सीख

किसी भी व्यक्ति को धन-संपत्ति से सुख नहीं मिलता है। जो लोग संतुष्ट रहते हैं, वही सुखी रहते हैं। अगर कोई धनी व्यक्ति असंतुष्ट है तो वह कभी भी सुखी नहीं हो सकता है।

  • 2
What are you looking for?