Is yojak chinhe and Nirdeshak chinhe different?

(1) योजक (−) - इसका प्रयोग सामासिक पदों या पुनरुक्त और युग्म शब्दों के मध्य किया जाता है; जैसे -

(i)

दूर-

पास

(ii)

पाप-

पुण्य

(iii)

उत्तर-

दक्षिण

(iv)

देश-

विदेश

(2) निर्देशिक चिह्न (—) - इसका प्रयोग उदारहण के लिए, विषय-विभाग संबंधी, प्रत्येक शीर्षक के आगे, वाक्यांशो अथवा पदों के मध्य विचार अथवा भाव को विशिष्ट रुप से व्यक्त करने हेतु, उद्धरण के अंत में, लेखक के नाम के पूर्व और कथोपकथन में नाम के आगे किया जाता है;

जैसे -

(i) तुलसी का कथन है "राम की महिमा अपार है।"

(ii) दिशाएँ चार होती हैं "पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण।"

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