Iss mei kon sa ras hai
(v) "बरदंत की पंगति कुंद कली, अधराधर पल्लव खोलन की।
चपला चमकें घन-बीच जगै, छवि मोतिन-माल अमोलन की।।
​घुँघराली लटें लटकें मुख-ऊपर, कुंडल लोल कपोलन की।
निवछावर प्रान करैं 'तुलसी' बलि जाऊँ लला इन बोलन की।।

मित्र!
आपके प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है।-
वात्सल्य रस

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