jhansi ki rani ke bare mein batao?
मित्र हम आपको इस विषय पर लिखकर दे रहे हैं।
हमारा इतिहास ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों से भरा पड़ा है जिन्होंने हमें प्रभावित किया हो। जैसे झ़ाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, महात्मा गाँधी इत्यादि ऐसी महान विभूतियाँ है जो कहीं न कहीं हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। यह हमें प्रेरणा देते हैं। परन्तु झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से मैं बहुत प्रभावित हूँ। वह एक ऐसी नारी थी जिन्होंने स्त्री होकर अंग्रंजों को लोहे के चने चबवा दिए। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के भदैनी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे व माताजी का नाम भागीरथी बाई था। मोरोपंत जी मराठा पेशवा बाजीराब के पास थे। इनका बचपन का नाम मनु था। बाजीराव पेशवा इन्हें प्यार से छबीली कहते थे। बचपन से ही इन्हें तलवारबाजी, घुड़सवारी, निशानेबाजी व सैनिकों संबंधी खेल में बड़ा मजा आता था। सन 1842 में इनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर जी के साथ हुआ। तभी से यह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाई। झाँसी की रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो 4 महीने की अल्पायु में चल बसा। गंगाधर राव का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता चला गया। सबकी सलाह पर उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया, जिसका नाम दामोदर रखा गया। 1853 में गंगाधर जी की मृत्यु हो गई। अंग्रेजी सरकार के लिए यह सुनहरा मौका था। डलहौजी इसी अवसर की ताक पर था। उसने झाँसी को ब्रिटिश शासन में मिला लिया। रानी ने अंग्रेजों के इस फैसले के आगे अपना सर नहीं झुकाया और उनके विरूद्ध आवाज उठा ली। उन्होंने आजादी का ऐसा बिगुल बजाया कि पूरा भारत उस आग में कूद गया उन्हें कई अंग्रेज अफसरों को लोहे के चने चबा दिए। इस वीर महिला ने युद्ध के मैदान में वीरगति पाई व इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाया।
हमारा इतिहास ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों से भरा पड़ा है जिन्होंने हमें प्रभावित किया हो। जैसे झ़ाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, महात्मा गाँधी इत्यादि ऐसी महान विभूतियाँ है जो कहीं न कहीं हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। यह हमें प्रेरणा देते हैं। परन्तु झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई से मैं बहुत प्रभावित हूँ। वह एक ऐसी नारी थी जिन्होंने स्त्री होकर अंग्रंजों को लोहे के चने चबवा दिए। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के भदैनी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे व माताजी का नाम भागीरथी बाई था। मोरोपंत जी मराठा पेशवा बाजीराब के पास थे। इनका बचपन का नाम मनु था। बाजीराव पेशवा इन्हें प्यार से छबीली कहते थे। बचपन से ही इन्हें तलवारबाजी, घुड़सवारी, निशानेबाजी व सैनिकों संबंधी खेल में बड़ा मजा आता था। सन 1842 में इनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निवालकर जी के साथ हुआ। तभी से यह झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई कहलाई। झाँसी की रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो 4 महीने की अल्पायु में चल बसा। गंगाधर राव का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता चला गया। सबकी सलाह पर उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया, जिसका नाम दामोदर रखा गया। 1853 में गंगाधर जी की मृत्यु हो गई। अंग्रेजी सरकार के लिए यह सुनहरा मौका था। डलहौजी इसी अवसर की ताक पर था। उसने झाँसी को ब्रिटिश शासन में मिला लिया। रानी ने अंग्रेजों के इस फैसले के आगे अपना सर नहीं झुकाया और उनके विरूद्ध आवाज उठा ली। उन्होंने आजादी का ऐसा बिगुल बजाया कि पूरा भारत उस आग में कूद गया उन्हें कई अंग्रेज अफसरों को लोहे के चने चबा दिए। इस वीर महिला ने युद्ध के मैदान में वीरगति पाई व इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाया।