Jivan Mein sacchai ka mahatva mukhya Bindu

नमस्कार मित्र,
आपका उत्तर इस प्रकार है।


सच्चाई की हमेशा जीत होती है और सच्चाई का अपना महत्व है। यह बात हम अपने बड़ों से सुनते आए हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो इस कथन को प्रमाणित करते हैं। राम जी की रावण पर विजय बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य की जीत का प्रमाण है। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने जीवन भर सच का साथ दिया। सच्चाई वह शस्त्र है जिससे हम बड़ी से बड़ी  बुराई को हरा सकते हैं। सत्य का मार्ग कठिन ज़रुर होता है लेकिन इसपर चलने वाले को मंज़िल अवश्य मिलती है। बड़े-बड़े राजनेताओं के भ्रष्टाचार को सामने लाने के लिए  कई बड़े पत्रकारों ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की। उन्हें अपनी नोकरी से भी हाथ धोना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे लड़ते रहे और अंत में अपने मकसद में कामयाब भी हुए। आज हमारे देश में चारों तरफ अन्याय, झूठ, हिंसा का वातावरण है। लेकिन दूसरी तरफ सच्चाई की ताकत इनका सामना करने के लिए  हमेशा तैयार रहती है। अत: यह कहना गलत न होगा कि सच्चाई का अपना महत्व होता है। 

 

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मनुष्य अपने विशेष गुणों के कारण ही अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ और महान् समझा और माना जाता है, उसके विशेषगुण हैं-चरित्र वल, विवेकशीलता, अनुशासन आदि अगर मनुष्य में ये गुण न हो तो वह पशु के समान समझा जायेगा। पशु से श्रेष्ठ रखने वाली मनुष्य की जितनी विशेषताएं हैं और उसके जो-जो गुण हैं, वे सभी अत्यन्त महान् और अद्भुत हैं। उसके सभी गुणों में उसका अनुशासन नामक गुण, ऐसा एक गुण है, जो उसे सचमुच में पशु से श्रेष्ठ और देवता की कोटि में रखने वाला है। मनुष्य अनुशासन का पाठ अपने जीवन की शुरूआत से ही पड़ने लगता है। उसकी अनुशासन की पाठशाला उसका अपना घर-परिवार होता है। यहीं से वह अनुशासन का ‘क’, ‘ख’ पाठ पढ़ना शुरू कर देता है। इसके बाद वह अपने स्थानीय विद्यालय में अनुशासन सहित विद्याध्ययन आरंभ करता है। इस अवस्था में आकर वह अपने माता-पिता, अभिभावक सहित अपने परिवार के ही नहीं, अपितु विद्यालय के सभी शिक्षकों अनुशासन की शिक्षा प्राप्त करता है। इस प्रकार परिवार अनुशासन् की पहली सीढ़ी है, तो विद्यालय और शिक्षण-संस्थाएं दूसरी सीटी। इस तरह अनुशासन का धरातल क्रमशः फैलता-बढ़ता जाता है।
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