Kabir ke done main Hiran ka udaharan kid sandarbh me diya hai? Kya AAP Kabir ke vichar se sahmqt hain ?

प्रिय मित्र ,

 हिरण की नाभि में कस्तूरी रहता है जिसकी सुगंध चारों ओर फैलती है। हिरण इससे अनभिज्ञ पूरे वन में कस्तूरी की खोज में मारा मारा फिरता है। इस दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं।हाँ मित्र, हम कबीर के विचार से पूरी तरह सहमत हैं क्योंकि मनुष्य ईश्वर की खोज में दर दर भटकता है लेकिन ईश्वर तो हम सबके अंदर वास करते हैं। 
 
 सादर , 

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