kabir ki 10 sakhiya
Hello Tejal,
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद । साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय । जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल। उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास। सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ। साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥