Kabirdas nai masjid ki Kya Kya visheshtayen batai hai

मित्र
 आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। तथापि, हम मस्जिद से संबंधित एक दोहे का अर्थ लिखकर दे रहे हैं।

कबीर जी कहते हैं कि मुसलमानों ने कंकर पत्थर जोड़कर मस्ज़िद बना ली हैं। यह उनकी धार्मिक उपासना का स्थल है। वे रोज़ इसमें चिल्ला-चिल्लाकर नमाज़ पढ़ते हैं जैसे कि उऩका खुदा बहरा हो। कबीर ने यहाँ बाहरी दिखावे तथा व्यर्थ के धार्मिक पाखंड पर व्यंग्य किया है। उनके अनुसार खुदा तो सर्वत्र व्याप्त है। उसके लिए मस्ज़िद बनाकर उसमें नमाज़ का दिखावा करने की आवश्यकता नहीं है। 

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कबीर दास जी के दोहे बहुत प्रचलित हैं जिनका सीधा-सीधा मतलब धर्म पद्धति पर वार  कहा जाता है.  परंतु क्या वास्तव मे  उनका अर्थ वोही है जिसको  हमे  स्चूलों मे बताया गया है?  कबीर दास जी की बानी ऐसी है  कि  “बरसत कंबल भीगत पानी”. आइये  एक बार  फिर से उन दोहों का  एक  अलग अर्थ जानने की कोशिश करते हैं और फिर  विवेचना  करेंगे कि क्या सही है.
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कबीर दास जी के दोहे बहुत प्रचलित हैं जिनका सीधा-सीधा मतलब धर्म पद्धति पर वार कहा जाता है. परंतु क्या वास्तव मे उनका अर्थ वोही है जिसको हमे स्चूलों मे बताया गया है? कबीर दास जी की बानी ऐसी है कि “बरसत कंबल भीगत पानी”. आइये एक बार फिर से उन दोहों का एक अलग अर्थ जानने की कोशिश करते हैं और फिर विवेचना करेंगे कि क्या सही है.
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