Kahin Bhali Hai Katak nibori aashay spasht Karen

 

नमस्कार मित्र!
कवि का आशय है कि गुलामी के जीवन में यदि अच्छे से अच्छा पकवान सोने के बर्तन में भी परोसा जाए, वह आज़ादी की कड़वी निबौरी के आगे बेकार है। अर्थात आज़ादी में खाना बेस्वाद क्यों न हो, वह भी गुलामी के जीवन से लाख गुणा स्वादिष्ट लगता है क्योंकि तब हम स्वयं के मालिक होते हैं। हमें किसी की गुलामी नहीं करनी पड़ती।
 
 

 

  • 0
What are you looking for?