kaidi aur kokila - pg 108, line number 10-17 (3rd paragh on that page) ........ please can someone explain it to me???

इन पंक्तियों में कवि कहता है कि मुझे देशभक्ति का इनाम जंजीरों का गहना मिला है अर्थात मुझे देशद्रोही कहकर जेल में बंद कर दिया है और जंजीरों से बाँध दिया गया है। जेल में आकर अब में कोल्हू में बैल के स्थान पर जोता गया हूँ। उससे आती आवाज़ मेरे जीवन का लक्ष्य हो गई है। कोल्हू खींच-खींचकर मेरे हाथ में गिट्टियाँ अर्थात छाले पड़ गए हैं। यह मेरे गाने के समान है, जिससे अंगुलियों ने अंग्रेज़ों के कष्ट के रूप में उभारा है। मैं अपने पेट से मोट खींचता हूँ तथा अंग्रेज़ों के घमंड को तोड़ रहा हूँ। भाव यह है कि कवि अंग्रेज़ों के दिए हर अत्याचार को हँसते हुए सह रहा है। अंग्रेज़ इस प्रकार के अत्याचार कर स्वतंत्रता सेनानियों की हिम्मत तोड़ना चाहते हैं। परन्तु उनके दिए कष्टों को हँसते हुए सहकर कवि उनके अहंकार को चकनाचूर कर रहा है। कवि आगे कोयल को संबोधित करते हुए कहता है कि दिन में मेरे कष्टों को देखकर तुझमें करूणा नहीं जगती है, आज रात के समय मुझे ऐसा प्यार किसलिए दिखा रही हो। तुम्हारा रात के समय यह स्वर मुझे रूला रहा है। अर्थात तेरा स्वर सुनकर मुझे बीते दिनों की याद आ रही है।

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and also the last paragh of the chapter :/

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