Kavi Agneepath per Chalte hue chah mangne ke liye Kyon mana kar rahe hain
मित्र
मनुष्य अपनी प्रकृति के अनुसार माँगने लगता है और अपनी परिस्थितियों सेे घबराकर दूसरों से सहायता माँगने लगता है। इससे उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है इसलिए अपनी कठिनाइयों का सामना स्वयं ही करना चाहिए। थोड़ा भी आश्रय मिल जाए तो उसकी अवहेलना न करके धन्य मानना चाहिए। इस कारण कवि अग्निपथ पर चलते हुए छांव नहीं मांगना चाहता है।
मनुष्य अपनी प्रकृति के अनुसार माँगने लगता है और अपनी परिस्थितियों सेे घबराकर दूसरों से सहायता माँगने लगता है। इससे उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है इसलिए अपनी कठिनाइयों का सामना स्वयं ही करना चाहिए। थोड़ा भी आश्रय मिल जाए तो उसकी अवहेलना न करके धन्य मानना चाहिए। इस कारण कवि अग्निपथ पर चलते हुए छांव नहीं मांगना चाहता है।