kavi redas prabhu ko swami aur apne aap ko das kehkar kya sidh karna chahta hai aur kyun?

एक दास अपने मालिक की आज्ञा अनुसार कार्य वह व्यवहार करता है। वह अपने मालिक के दिए हुए भोजन, वस्त्र तथा धन को ग्रहण करता है। इसके बदले वह अपने मालिक के प्रति कृतज्ञ रहता है। उनकी सेवा तत्पर होकर करता है। वैसे ही रैदास अपने भगवान को मालिक मानते हैं और स्वयं को सेवक। उनके अनुसार उनकी कृपा से ही रैदास को राजाओं जैसा यश प्राप्त हुआ। उनके प्रभु की कृपा के कारण ही वह समाज में सर उठाकर और सुखपूर्वक जी रहे हैं। रैदास स्वयं को उनका दास मानकर उनके प्रति अपनी स्वामी भक्ति दर्शा रहे हैं। एक सेवक भक्ति और प्रेम के माध्यम से अपने मालिक को प्रसन्न करना चाहते हैं। नौकर मालिक का संबंध ऐसा संबंध है, जो छोटा अवश्य होता है। परन्तु मालिक अपने सेवक के प्रति और सेवक अपने मालिक की प्रति बंधे होते हैं।

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