Kavyitri deepak ko pulak pulak jalne ko kyun kehti hai?

तन रूपी मोम के जलने से और अहंकार के पिघलने से चारों तरफ़ दिव्य प्रकाश आलोकित हो जाता है। वह उस प्रकाश में स्वयं को जलाकर ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करना चाहती हैं। इसलिए वह कहती है कि दीपक के पुलक-पुलकर जलता रहने के लिए कहती है।

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