Keval bahari bhinnta ke aadhar par apni parampara aur pidiyon ko nakarne vaalon ko kya sacmuch is baat ka bilkul ehsaas nahi hota ki unka asann ateet kis kadar unke bhitar jar jamae baitha rehta ha! Samay ka pravah bhale hi hame doosri dishaon mein bahakar le jae ... Sthitiyon ka dabav bhale hi hamare roop badal de, hme poori tarah usse mukt to nahi hi kar sakta!

Pls explai the meaning.

मित्र इसका अर्थ यह है कि
लेखिका और उनके पिता दो अलग-अलग व्यक्तित्व के स्वामी थे। लेकिन लेखिका बहुत हद तक अपने पिता जैसी ही थी। उसके पिता अपनी पुत्री को पहले सिर्फ इसलिए नकारते थे क्योंकि उसका रंग दबा हुआ था। वह उसके साथ भेदभाव करते थे। लेखिका की कहती है कि जो लोग अपनी परंपरा और पीढ़ियों को पसंद नहीं करते हैं। उनका अनादर करते हैं क्या उन्हें याद नहीं रहता है कि उनका बीता समय किस प्रकार उनके अंदर ही है। अर्थात हम अपने बीते समय में जो कुछ करते हैं, उसका असह हमारे अंदर अवश्य पड़ जाता है। समय बीतने पर हम उन बातों को भूल जाते हैं और सोचते हैं कि हम पर उस बात को कोई असर नहीं पड़ा है, तो यह गलत है। हम पर उसका असर अवश्य पड़ा होता है। आगे चलकर कितनी ही अच्छी-बुरी मुसीबत आए, हम पर वह प्रभाव जाता नहीं है।

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