Kisi aarthik, samajik ya rajneetik vishay par speech.

मित्र हम आपको सामाजिक विषय पर लिखकर दे रहे हैं। आशा करते हैं कि वह आपकी सहायता करेगा।-

आदरणीय अध्यापक गण एवं मेरे प्यारे साथियों!
आज मैं आपके दहेज प्रथा के विषय में कुछ शब्द कहना चाहता हूँ।
दहेज प्रथा हिंदू समाज की नवीनतम बुराइयों में से एक है। विगत बीस-पच्चीस वर्षों में यह बुराई इतनी बढ़कर समाने आई है कि इसका प्रभाव समाज की आर्थिक एवं नैतिक व्यवसाय की कमर तोड़ रहा है। इस प्रथा के पीछे लोभ की दुष्प्रवृत्ति है। दहेज प्रथा भारत के सभी-क्षेत्रों और वर्गों में व्याप्त है। विशेषकर व्यापारी वर्ग में इसका प्रकोप अधिक दिखाई देता है। अपनी लड़की की शादी में व्यक्ति सामर्थ्य से अधिक खर्च करता है और लड़की को उपहार के रूप मे अत्यधिक रूपया-पैसा आदि देने का प्रयत्न करता है। लड़की के भावी पति के लिए, उस लड़के के पिता की झोली नोटों से भरनी पड़ती है।
दहेज प्रथा को जीवित रखने वाले तो थोड़े-से व्यक्ति हैं परन्तु समाज पर इसका कुप्रभाव अत्यधिक पड़ रहा है। कितनी बार देखा जाता है कि पिता को अपनी सुंदर लड़की की शादी धन के अभाव के कारण किसी भोंडी शक्ल के लड़के के साथ करनी पड़ती है। अनेक बार सुनने मे आता है कि अमुक लड़की ने आत्महत्या कर ली।
 
इस दहेज प्रथा की बीमारी की जड़ एक तो काला धन है, दूसरे मनुष्य की लोभ की दुष्प्रवृत्ति इस कार्य को और प्रेरित करती है। किसी एक लड़की की शादी करके बहुत सा दहेज ले लेते हैं और फिर उस लड़की को मार देते हैं या आत्महत्या करने के लिए विवश कर देते हैं। इसके बाद दूसरी शादी करके दुबारा दहेज ले लेते हैं। दहेज प्रथा के विकास में नारी का बड़ा हाथ है, यद्यपि इस प्रथा का बुरा प्रभाव नारी पर ही अधिक पड़ता है।
 
प्राय: देखा जाता है कि बहू दहेज कम लाए तो परिवार का पुरूष वर्ग तो कोई ध्यान नहीं देता, परन्तु स्त्रियाँ ज़रा-ज़रा सी बात का व्यंग्य कसती रहती हैं। बेचारी को अपने मन में ऊँची नीची बाते सोचने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता है। दहेज प्रथा की बीमारी पढ़े-लिखे लोगों में अनपढ़ों की अपेक्षा अधिक फैली हुई है।
सरकार ने दहेज प्रथा के विरूद्ध कानून बना दिया है लेकिन कानून बेचारा क्या करे, जब कोई शिकायत करने वाला ही न हो।लड़की का पिता अपनी इज़्ज़त के डर से शिकायत नहीं करता, अन्य लोगों को क्या गरज! इस प्रथा को तो समाज का युवा वर्ग ही तोड़ने में समर्थ हो सकता है। वह वर्तमान परम्पराओं का एक बार तिरस्कार कर दे तो सारा काम आसानी से बन सकता है।


जय हिन्द!

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