kohre ki vah subha{rachnatmak lekhan}
हम इस विषय पर आरंभ करके दे रहे हैं। इसे स्वयं विस्तारपूर्वक लिखने का प्रयास करें-
इस बार दिल्ली में बहुत भंयकर सर्दी पड़ी। सरकार द्वारा विद्यालयों को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया था। कोहरे की चादर में लिपटी दिल्ली में लोगों का निकलना कठिन हो गया था। शाम को 7 बजे से ही कोहरा छाने लगता और सुबह देर तक कोहरा छाया रहता था। एक बार हम सुबह नौ बजे घर से निकले चारों तरफ कोहरा छाया हुआ था। हम सभी बच्चे एकत्र हो गए और कोहरे में छुपन-छुपाई खेलने लगे। कोहरे में खेलने का अपना ही मज़ा था। वैसे ही हम टोपी, दस्ताने और जेक्ट के कारण पहचाने नहीं जा रहे थे। कोहरे ने तो खेल को और भी मज़ेदार बना दिया। ........
इस बार दिल्ली में बहुत भंयकर सर्दी पड़ी। सरकार द्वारा विद्यालयों को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया था। कोहरे की चादर में लिपटी दिल्ली में लोगों का निकलना कठिन हो गया था। शाम को 7 बजे से ही कोहरा छाने लगता और सुबह देर तक कोहरा छाया रहता था। एक बार हम सुबह नौ बजे घर से निकले चारों तरफ कोहरा छाया हुआ था। हम सभी बच्चे एकत्र हो गए और कोहरे में छुपन-छुपाई खेलने लगे। कोहरे में खेलने का अपना ही मज़ा था। वैसे ही हम टोपी, दस्ताने और जेक्ट के कारण पहचाने नहीं जा रहे थे। कोहरे ने तो खेल को और भी मज़ेदार बना दिया। ........