kya koy mujaha 

"यमराज की दिशा "

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नमस्कार मित्र,

चंद्रकांत कहते हैं कि उन्हें यह नहीं पता की उनकी माँ की भगवान से मुलाकात हुई थी या नहीं। परन्तु वह लेखक को हमेशा यही जताती थीं कि जैसे वह भगवान से बात करती हैं। वह भगवान के दिए हुए परामर्श पर ही जीवन के कष्टों व दुखों को सहने का रास्ता ढूँढ़ लेती थी।

एक बार की बात है उनकी माँ ने उनसे कहा था कि दक्षिण दिशा की तरफ़ पैर करके मत सोया करो क्योंकि यह मृत्यु की दिशा। उनकी दिशा की तरफ़ पैर करके सोना यमराज को नाराज करना है। उन्हें नाराज करना समझदार मनुष्य का काम नहीं है।

माँ ने जब यमराज की दिशा के बारे में बताया था। तब वे बहुत छोटे थे। इसलिए वह बात वे समझ नहीं पाए थे। उन्होंने माँ से पूछा था कि माँ यमराज का घर कहाँ है? उनके इस प्रश्न पर माँ ने यह बताया कि जहाँ भी हम रहते हैं वहाँ से दक्षिण दिशा की ओर, वहाँ यमराज का घर होता है। माँ कि बात मानने का यह फ़ायदा जरूर हुआ कि फिर उन्हें कभी दक्षिण दिशा पहचानने में परेशानी नहीं हुई। 

चंद्रकांत जी अपने मन दबी जिज्ञासा को पूरा करने के लिए मैं दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक गए परन्तु उन्हें कभी यमराज का घर दिखाई नहीं दिया। उसी समय मुझे माँ की बात याद आई वह कहती थी कि दक्षिण दिशा को लाँघ लेना सम्भव नहीं था। चंद्रकांत जी कहते हैं यदि मैं दक्षिण दिशा के छोर (अन्त) तक पहुँच पाता तो यमराज के घर को देख लेता। चंद्रकांत जी आगे कहते हैं कि बीते जमाने से आज के समय की परिस्थिति बिलकुल अलग है। आज आप जिस दिशा पर पैर करके सोओ वहीं दक्षिण दिशा के समान हो जाती है। आज लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर अत्याचार, शोषण करना शुरू कर दिया है। यदि उनके स्वार्थ के लिए किसी की जान भी जाती है तो उनको तनिक भी दया नहीं आती हैं। आज सभी दिशाओं में इन्हीं स्वार्थी मनुष्यों रूपी यमराजों के बड़े-बड़े महल खड़े हैं। वे सब अपने स्वार्थ के लिए यमराज की भांति दहकती स्वार्थी आँखों से देखते हुए विराजते हैं। 

वह इस बात से आहत हुए माँ से कहते हैं माँ अब आपके मृत्यु के देवता यमराज की दिशा नहीं रही है क्योंकि इन मनुष्य रूपी यमराजों ने उनका कार्य छीनकर स्वयं करना आरम्भ कर दिया है। इसलिए वह मन ही मन सोचते हैं कि माँ जिस दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा कहती है वह अब नहीं है।


 

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