ददए गए गदमयॊश भें उचित विययभ चिन्ह रयगयते हुए गदमयॊश को लरखिए-

फयज भें एक नमी आशय जग उठी| िह दगु ने उत्सयह से अऩनेघयमर शयीय को घसीटतय हुआ िट्टयन के

ककनयये तक िीॊि रयमय दोऩहय को िुरे आकयश को देिकय उसकी आॉिे िभक उठी उसने एक गहयी

रम्फी सयॉस री औय अऩने ऩॊि पैरयकय हिय भें कूद ऩड़य ककॊतुउसके टूटे ऩॊिो भें इतनी शक्तत नहीॊ

थी कक उसके शयीय कय फोझ सॊबयर सके ऩत्थय कय उसकय शयीय रुढ़कतय हुआ नदी भें जय चगयय ।एक

रहय ने उठकय उसके ऩॊिो ऩैय जभे िून को धो ददमय उसके थके भयॊदे शयीय को सफ़ेद पेन सेधतकय

ददमय, कपय उसकी गोद भें सभेट कय उसे अऩने सयथ सयगय की ओय रे िरी!

रहयें िट्टयनों ऩय सय धुननl ेरगी भयनो फयज की भत्ृम ऩय आॉसू फहय यही हो धीये धीये सभुद्र के

असीभ विस्तयय भें फयज ओझर हो गमय िट्टयन की यििर भें फैठय हुिय सयॉऩ फड़ी देय से फयज की भत्ृमु

औय आकयश भें लरए उसके प्रेभ औय उसके लभरने ियरे सुि दुःुि के विषम भें सोिते यहय आकयश की

असीभ शून्मतय भें तमय ऐसय आकषषक ददमय हे क्जसके लरए फयज ने अऩने प्रयण गिय ददए िह िुद तो भय

गमय रेककन भेये ददर कय िैन अऩने सयथ रे लरमय ।

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